पर्यावरण बचाना है--सबको पेड़ लगाना है!!---धरती हरी भरी रहे हमारी--अब तो समझो जिम्मेदारी!! जल ही जीवन-वायू प्राण--इनके बिना है जग निष्प्राण!!### शार्ट एड्रेस "www.paryavaran.tk" से इस साईट पर आ सकते हैं

बचपन और पर्यावरण.---हरीश सिंह

>> गुरुवार, 21 अप्रैल 2011

परिचय--हरीश सिंह
मैं उत्तरप्रदेश के संत रविदास नगर भदोही जनपद का रहने वाला हू. मेरी
शिक्षा  यही पर हुयी. १९८७ से समाचार पत्रों के जनवाणी, पाठकनामा आदि में
लिखने के साथ ही लेखन प्रति आकर्षित हुआ . १९९२ में भदोही से प्रकाशित एक
पाक्षिक अख़बार से जुडा. इसके बाद हिंदी दैनिक आज में लिखने लगा,
तत्पश्चात तीन वर्ष तक दैनिक जागरण में कार्य किया. मन उब गया तो उसे
छोड़कर न्यू कान्तिदूत टाइम्स में बतौर प्रधान संपादक के पद पर  कार्यरत
हुआ जो आज तक हू. इसके साथ ही आज अख़बार में विशेष संवाददाता के रूप में
कार्यरत हू.

जीवन के लिए खतरा बना पर्यावरण प्रदूषण
पर्यावरण प्रदूषण आज हमारे देश ही नहीं वरन पूरे विश्व की समस्या बनी हुई
है, जिसे लेकर आज पूरा विश्व परेशान है किन्तु इस प्रदूषण से निजात पाने
के लिए कोई कारगर उपाय नहीं ढूढे जा रहे है, जिसके कारण यह समस्या
दिनोदिन बढती जा रही है. प्रदूषण का अर्थ है प्राकृतिक संतुलन में दोष
पैदा हो जाना. शुद्ध वायु,शुद्ध जल, शुद्ध खाद्य पदार्थ और शांत वातावरण
का न मिलना ही प्रदूषण है . वायु,जल, और ध्वनि प्रदूषण को लेकर आज पूरा
विश्व परेशानी में पड़ा है.पर्यावरण प्रदूषण जीवन के लिए खतरा बन चुका
है.
    देखा जाय तो वायु प्रदूषण छोटे-छोटे शहरों से लेकर महानगरों तक फैला
है. शुद्ध वायु पाने के लिए लोग ग्रामीण क्षेत्रों व पहाड़ी स्थलों की और
पलायन करते हैं. महानगरों में कल-कारखानों का धुवाँ, मोटर वाहनों का
धुवाँ इस तरह से फैला है की स्वस्थ वायु में साँस लेना भी दूभर हो गया
है. हमारे यहाँ कालीन नगरी में काती रंगाई के लिए लगे डाईंग प्लांट के
कारण छतो पर सूखने के लिए डाले गए कपड़ो पर काले कण जमा हो जाते है. यही
कण आंख में पड़कर आँखों की बीमारी को बढ़ावा दे रहे हैं तो स्वांस के
द्वारा फेफड़ो में पहुँच कर असाध्य रोगों को जन्म दे रहे रहे हैं. ऐसी
समस्या लगभग हर उन शहरों की है जहा सघन आबादी होने के पेड़ो का अभाव है
और वातावरण तंग है.

वायु प्रदूषण के अलावा सबसे विकट समस्या जल प्रदूषण की है. कल-कारखानों
का दूषित जल नदी-नालों में मिलकर भयंकर जल-प्रदूषण पैदा करता है ,  इससे
अनेक बीमारियाँ पैदा होती है. कालीन नगरी में जल प्रदूषण की स्थिति भयावह
रूप धारण कर चुकी है. जनपद की आधी आबादी स्वच्छ जल से कोसो दूर है.सबसे
भयावह स्थिति भदोही नगर की है, जहा केमिकलयुक्त गन्दा पानी सीधे भूगर्भ
जल में प्रवाहित किया जा रहा है. जिसके कारण भूगर्भ जल में खतरनाक केमिकल
की मात्रा बढ़ गयी है. लाखो लीटर भूगर्भ जल का दोहन करने के उपरांत उसे
विषैला कर पुनः भूगर्भ जल में मिला दिया जाता है. जिससे उसमे व्याप्त
कार्बनिक व अकार्बनिक रसायन का तेजी से आक्सीकरण होता है. जैव आक्सीकरण
के कारण जल में उपस्थित घुलित आक्सीज़न की कमी इस हद तक पहुँच सकती है की
उससे जलीय प्राणियों की मौत तक हो सकती है.
 कालीन नगरी में डाईंग प्लांट के जहरीले जल को मिलाये जाने के गंभीर
परिणाम सामने आये हैं, कई मुहल्लों में अपाहिज  बच्चे पैदा हुए या फिर
पैदा होने के बाद अपाहिज हो गए . जनपद के एक भी स्थान पर  सीवर ट्रीटमेंट
प्लांट नहीं है. जबकि नगर के अन्दर इसकी उपलब्धता  काफी मायने रखती है.
चिकित्सको का कहना है की पानी में मिले जहरीले तत्व जैसे मैग्नेशियम  एवं
सल्फेट की उपस्थिति से आंतो में जलन व खराबी आती है. फ्लोराइड से
फ्लोरोसिस एवं नाइट्रेट  से मोग्लोविनेमिया नामक बीमारी हो सकती है.
पूर्व में केन्द्रीय भूगर्भ जल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की टीम नगर के कई
स्थानों से पानी का नमूना लिया था जाँच के उपरांत आंकड़ा चौकाने वाला था
विशेष रूप से आर्सेनिक व क्रोमियम की मात्रा चौंकाने वाली थी , प्रति
लीटर पानी में आर्सेनिक ३.४ मिली. व क्रोमियम २.९ मिली. पाई गयी . पानी
में बढ़ी क्रोमियम,सीसा व कैडमियम से कोम अल्सर, स्नायुमंडल पर
दुस्प्रभाव, रक्ताल्पता, सिर व जोड़ो में दर्द अनिद्रा,गुर्दे, फेफड़े व
दिल की बीमारी व   अपंग बच्चे पैदा हो रहे  है.

 तीसरा नंबर आता है ध्वनि प्रदूषण का. मनुष्य को रहने के लिए शांत
वातावरण चाहिए.  परन्तु आजकल कल-कारखानों का शोर , यातायात का शोर ,
मोटर-गाड़ियों की चिल्ल-पों , लाउड स्पीकरों की कर्णभेदी  ध्वनि ने बहरेपन
और तनाव को जन्म दिया है. शहरो में बढ़ रहे ध्वनि प्रदूषण का परिणाम
साफतौर पर परिलक्षित हो रहा है देखा जाय बातचीत करने के दौरान हम ऊँची
आवाज़ में बात करने की आदत बना चुके है.


वातावरण में व्याप्त हो रहे  प्रदूषणों के कारण मानव के स्वस्थ जीवन को
खतरा पैदा हो गया है ! खुली हवा में लम्बी साँस लेने तक को तरस गया है
आदमी ! गंदे जल के कारण कई बीमारियाँ फसलों में चली जाती हैं जो मनुष्य
के शरीर में पहुँचकर घातक बीमारियाँ पैदा करती हैं .   पर्यावरण-प्रदूषण
के कारण न समय पर वर्षा आती है , न सर्दी-गर्मी का चक्र ठीक चलता है !
सूखा  , बाढ़  , ओला आदि प्राकृतिक प्रकोपों का कारण भी प्रदूषण है,
पर्यावरण में दिनों दिन बढ़ रहे प्रदूषण के कारण प्रकर्ति   ने भी अपना
संतुलन खो दिया है. समय चक्र का संतुलन डावाडोल हो रहा है. प्रदूषण को
बढ़ाने में कल-कारखाने , वैज्ञानिक साधनों का अधिक उपयोग , फ्रिज , कूलर
, वातानुकूलन , ऊर्जा संयंत्र आदि दोषी हैं ! प्राकृतिक संतुलन का
बिगड़ना भी मुख्य कारण है ! वृक्षों को अंधा-धुंध काटने से मौसम का चक्र
बिगड़ा है ! घनी आबादी वाले क्षेत्रों में हरियाली न होने से भी प्रदूषण
बढ़ा है ! विभिन्न प्रकार के प्रदूषण से बचने के लिए चाहिए की अधिक से
अधिक पेड़ लगाए जाएँ , हरियाली की मात्रा  अधिक हो ! सड़कों के किनारे घने
वृक्ष हों ! आबादी वाले क्षेत्र खुले हों , हवादार हों , हरियाली से
ओतप्रोत हों,   कल-कारखानो को आबादी से दूर रखना चाहिए और उनसे निकले
प्रदूषित मल को नष्ट करने के उपाय सोचने चाहिए, पर्यावरण संतुलन को बचाने
के लिए पूरा विश्व चिंतित दिखाई दे रहा है, संगोष्ठी  आयोजित की जा रही
है. विचार विमर्श किये जा रहे है. लाखो-करोनो रुपये पानी की तरह बहाए जा
रहे है है. किन्तु अभी तक इसके सार्थक परिणाम दिखाई नहीं दे रहे है
दूसरी तरफ हमारी सोच संकुचित होती जा रही है. हम सोचते है की सिर्फ एक
आदमी के करने से क्या होगा किन्तु हमारी सबसे बड़ी कमी यही है. यदि
पृथ्वी पर रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति गंभीरता पूर्वक विचार करके इस विकट
समस्या के निस्तारण के बारे में नहीं सोचेगा तो इसका दुष्परिणाम हमें और
आने वाकी पीढ़ी को भुगतना पड़ेगा ..

2 टिप्पणियाँ:

Alokita Gupta 22 अप्रैल 2011 को 11:01 am बजे  

हरीश जी अच्छा लिखा है आपने एक सार्थक पोस्ट के लिए बधाई

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