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बचपन और हमारा पर्यावरण . योगेश कुमार गोयल

>> रविवार, 3 अप्रैल 2011

योगेश कुमार गोयल
समाचार-फीचर एजेंसियों ‘मीडिया केयर नेटवर्क’, ‘मीडिया एंटरटेनमेंट फीचर्स’ तथा ‘मीडिया केयर न्यूज’ में प्रधान सम्पादक। राजनीतिक, सामयिक तथा सामाजिक विषयों पर विश्लेषणात्मक लेख, रिपोर्ट व सृजनात्मक लेखन। दैनिक भास्कर, पंजाब केसरी, नवभारत टाइम्स, दैनिक जागरण, दैनिक ट्रिब्यून, स्वतंत्र वार्ता, राजस्थान पत्रिका, नवभारत, लोकमत समाचार, रांची एक्सप्रेस, अजीत समाचार, पा×चजन्य, कादम्बिनी, शुक्रवार, सरिता, मुक्ता, सरस सलिल, विचार सारांश, इंडिया न्यूज इत्यादि अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में विगत 20 वर्षों में विभिन्न विषयों पर 8500 से अधिक लेख, रिपोर्ट, फीचर इत्यादि प्रकाशित। आकाशवाणी रोहतक से दो दर्जन विशेष वार्ताएं प्रसारित। नशे के दुष्प्रभावों पर 1993 में ‘मौत को खुला निमंत्रण’ पुस्तक (पांच विभिन्न संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत), ‘हरियाणा साहित्य अकादमी’ के सौजन्य से 2009 में ‘जीव-जंतुओं की अनोखी दुनिया’ पुस्तक तथा 2009 में ‘तीखे तेवर’ पुस्तक प्रकाशित। पत्रकारिता व साहित्य के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए जिला प्रशासन रोहतक, वाईएमसीए इंस्टीच्यूट ऑफ इंजीनियरिंग, भारतीय दलित साहित्य अकादमी, विंध्यवासिनी जनकल्याण ट्रस्ट, अखिल भारतीय राष्ट्रभाषा विकास संगठन, अखिल भारतीय साहित्य कला मंच, अनुराग सेवा संस्थान इत्यादि अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित।

सम्पर्क: मीडिया केयर ग्रुप, मेन बाजार बादली, जिला झज्जर (हरियाणा)-124105
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देश की राजधानी दिल्ली में विकास परियोजनाओं के लिए बड़े पैमाने पर चल रहे निर्माण कार्यों के कारण पेड़ों को काटने का सिलसिला वर्षों से बदस्तूर जारी है, इसके बावजूद यदि दिल्ली में हरित क्षेत्र बढ़ा है तो इसमें बच्चों के अमूल्य योगदान को नकारा नहीं जा सकता। दिल्ली सरकार के दावों पर यकीन करें तो विगत दस वर्षों में दिल्ली में हरित क्षेत्र में लगभग 15 गुना बढ़ोत्तरी हुई है। दरअसल इस दौरान दिल्ली में सैंकड़ों स्कूलों में बच्चों में पर्यावरण संरक्षण के प्रति अनूठी चेतना जागृत की गई, जिसके चलते इको-क्लबों के जरिये जगह-जगह पौधे लगाए गए और बच्चों ने इन पौधों का लालन-पालन तथा पोषण अपने भाई-बहनों की भांति किया और इस तरह बच्चों की मदद से ही दिल्ली में लगभग 35 ‘नगर वन’ विकसित करने में मदद मिली और हर तरह के प्रदूषण से त्रस्त दिल्ली में हरित क्षेत्र बढ़ता गया है। पर्यावरण संरक्षण के अपेक्षित लक्ष्य तक पहुंचने के लिए देशभर के स्कूली छात्रों में आज ऐसी ही चेतना जागृत किए जाने की दरकार है।
            दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित मानती हैं कि यदि दिल्ली के बच्चों का सहयोग एवं योगदान नहीं मिला होता तो दिल्ली आज इतनी हरी-भरी नहीं होती, न ही इसकी हवा इतनी शुद्ध बनी होती,, दिल्ली में पटाखों से उपजे ध्वनि और वायु प्रदूषण पर भी लगाम नहीं लगी होती।
            आज विभिन्न माध्यमों से बच्चों को यह समझाया जाना बहुत जरूरी है कि पृथ्वी का लगातार बढ़ता तापमान और जलवायु में परिवर्तन न केवल भारत बल्कि दुनियाभर में मानव जीवन के लिए कितना गंभीर खतरा बनता जा रहा है। मौसम का बिगड़ता मिजाज मानव जाति, जीव-जंतुओं तथा पेड़-पौधों के लिए तो बहुत खतरनाक है ही, पर्यावरण संतुलन के लिए भी गंभीर खतरा है। ‘ग्लोबल वार्मिंग’ की विकराल होती समस्या के बारे में भी बच्चों को समय रहते पर्याप्त जानकारी देनी होगी, जिसके लिए औद्योगिक इकाईयों और वाहनों से निकलने वाली हानिकारक गैसें, कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, मीथेन इत्यादि प्रमुख रूप से जिम्मेदार हैं, जिनका वायुमंडल में उत्सर्जन विश्वभर में शुरू हुई औद्योगिक क्रांति के बाद से तीव्र गति से बढ़ा है।
            देशभर में पर्यावरण प्रदूषण पर कुछ हद तक लगाम लग सके, इसके लिए हमें चाहिए कि हम बच्चों को दीवाली के दौरान पटाखे नहीं चलाने को प्रेरित करें। प्रतीक के तौर पर एक-एक फुलझड़ी चलाई जा सकती है किन्तु पटाखों की लड़ियां नहीं जलाने के लिए बच्चों को प्रोत्साहित करना आवश्यक है लेकिन इसके लिए बच्चों के समक्ष हमेें स्वयं को आदर्श बनाकर पेश करने की जरूरत है। कुछ स्थानों पर तो आजकल देखा भी जा रहा है कि बच्चों ने खुद अपने सप्रेम आग्रह से बड़ों को ही विवश कर दिया कि वे पटाखे न चलाएं। इसी प्रकार यह जानकर खुशी होती है कि कुछ स्थानों पर बच्चे अब होली का त्यौहार भी प्राकृतिक रंगों से न केवल अनोखे अंदाज में मनाते हैं बल्कि अपने इन प्रयासों से पर्यावरण की रक्षा में भी अपना बहुमूल्य योगदान दे रहे हैं। यही नहीं, बिजली और पानी के संरक्षण के लिए भी जन-जागरूकता उत्पन्न करने का बहुत बड़ा दायित्व आज कहीं-कहीं बच्चे ही पूरी शिद्दत से निभा रहे हैं। निसंदेह बच्चों की इन कोशिशों से न केवल वायु शुद्ध होती है बल्कि प्रदूषण के दानव का कद भी बौना होता है और वायु शुद्ध होने से मनुष्य की आयु भी बढ़ती है। देशभर में हर स्थान पर बच्चों में पर्यावरण संरक्षण का यह जज्बा पैदा करने की सख्त दरकार है।
            पर्यावरण को प्लास्टिक की थैलियों से बहुत बड़ा खतरा है, इसीलिए सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर प्लास्टिक की थैलियों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया गया है। दरअसल प्लास्टिक की थैलियों से न केवल पर्यावरण को बल्कि पशुओं को भी खतरा है क्योंकि अक्सर देखा जाता है कि जगह-जगह पशु खाने की वस्तुओं के साथ-साथ प्लास्टिक की थैलियों को खा जाते हैं, जो कई बार उनकी मौत का कारण बनती हैं। प्लास्टिक की थैलियों के विकल्प के तौर पर अब बाजार में जूट, कागज, कपड़े और पर्यावरण अनुकूल सामग्री के बड़े सुंदर-सुंदर थैले दिखाई देने लगे हैं लेकिन प्लास्टिक की थैलियों पर प्रतिबंध के बावजूद अभी भी इन थैलियों का खूब इस्तेमाल हो रहा है। हालांकि कुछेक जगहों पर बच्चों के माध्यम से प्लास्टिक की थैलियों के खिलाफ आवाज उठाई जा रही है और पर्यावरण अनुकूल विकल्पों का प्रचार किया जा रहा है लेकिन इस दिशा मेें अभी बहुत गंभीर प्रयासों की जरूरत है। पेंटिग्स, कहानी, कविता, लेख, स्लोगन प्रतियोगिताओं के जरिये बच्चों को पर्यावरण प्रदूषण के दुष्प्रभावों और पर्यावरण संरक्षण के सार्थक उपायों के बारे में विस्तार से जानकारी देने और पर्यावरण संरक्षण में महत्ती भूमिका निभाने के लिए उन्हें प्रेरित करने की इस समय सख्त दरकार है।
            यह बात सही है कि बच्चे जब कुछ काम करने की ठान लेते हैं तो यह उम्मीद बन जाती है कि अब वह काम सिरे चढ़ने वाला है और उसके अनुकूल परिणाम निकलने वाले हैं। पर्यावरण संरक्षण के लिए हमें इस दिशा में सार्थक प्रयास करना चाहिए कि बच्चों के दिलोदिमाग में धरती के संरक्षण एवं परिरक्षण का संदेश सदैव तरोताजा रहे। वैसे भी बच्चों की आवाज जितनी ज्यादा बुलंद होगी, उतनी ही जल्दी हम पर्यावरण प्रदूषण के खिलाफ जंग जीत सकेंगे। बच्चों को इस दिशा में जागरूक किया जाना भी बहुत जरूरी है कि हमें जो प्राकृतिक संसाधन उपलब्ध हैं, वे काफी सीमित हैं और वे सदियों तक चलने वाले नहीं हैं, इसलिए उनके अंधाधुंध दोहन से यथासंभव बचें।

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