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पर्यावरणीय प्रदूषण रोकना मानव का कर्तव्य

>> शनिवार, 5 जून 2010

मनुष्य अपने वातावरण की उपज है,इसलिए मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में स्वच्छ वातावरण जरूरी है। लेकिन जब प्रश्न पर्यावरण का उठता है तो यह जरुरत और भी बढ जाती है। वास्तव में जीवन और पर्यावरण का अटूट संबंध है। पर्यावरण का शाब्दिक अर्थ हमारे चारों ओर छाया आवरण है, प्रकृति में जल,वायु, भूमि, पेड़-पौधे, जीव-जन्तु में एक संतुलन कायम है। यह संतुलन ही प्राणी मात्र के जीवन का आधार है। प्रकृति की अनुकूलता पर ही मानव सभ्यता का विकास निर्भर करता है। प्राचीन काल से ही मानव अपने रहने की जगह तथा उसके आस-पास के वातावरण को स्वच्छ एवं हानिकारक तत्वों से मुक्त करता आ रहा है। परन्तु आधुनिक मानव की आत्मघाती प्रवृत्ति की वजह से वर्तमान युग में पर्यावरण तथा परिस्थितियों के प्रति जागरुकता को बढाने की सर्वाधिक जरुरत महसूस की जा रही है।

प्राकृतिक वातावरण की सुरक्षा तथा परिस्थितिकी संतुलन की अवधारणा बेशक बढ गयी है परन्तु इसकी आवश्यक्ता से इंकार नहीं किया जा सकता। मानव जिस प्राकृतिक वातावरण में पलता है,बडा होता है तथा अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए संघर्ष करता है, उस प्रकृति के कई घटक हैं। इन सभी घटकों की संरचना आपस में काफ़ी जटिल है।प्राकृतिक रुप से ही इन घटकों की आपस में कुछ मूलभूत सिद्धातों के आधार पर परस्पर सम्बद्धता पर निर्भरता है। मानव मात्र के अस्तित्व का सारा दारोमदार इन्ही तत्वों के प्राकृतिक संतुलन पर काफ़ी हद तक निर्भर करता है।

हमें सभी परिस्थितियों सांस लेने के लिए ताजी हवा, शुद्ध जल, कोलाहल मुक्त वातावरण तथा भोजन के लिए आहार मिलना चाहिए। परन्तु अफ़सोस की बात यह है कि हमें प्रदुषित वायु, प्रदुषित जल, कोलाहल पूर्ण प्रदुषित वातावरण में ही रहने को मजबूर होना पड़ रहा है। इसलिए इस अमुल्य निधि के संरक्षण का दायित्व भी स्वत: मानव समाज पर ही है। इस दृष्टि से इस क्षेत्र में संतु्लन बनाए रखना एवं संरक्षण के दायित्व का निर्वाह  करने हेतु सामान्य जन में पर्यावरणीय चेतना का विकास जरुरी है। साथ ही साथ पर्यावरणीय प्रदूषण की रोकथाम करना आवश्यक कर्तव्य बनता है।

6 टिप्पणियाँ:

श्यामल सुमन 5 जून 2010 को 7:24 am बजे  

एक समसामयिक और सार्थक चिन्तना।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

M VERMA 5 जून 2010 को 7:27 am बजे  

सामयिक, सार्थक और सारगर्भित आलेख
पर्यावरण के प्रति हमारी उदासीनता हमें कहीं का नहीं छोड़ेगी

M VERMA 5 जून 2010 को 7:27 am बजे  

आपके ब्लाग की हरीतिमा भा गई.

सूर्यकान्त गुप्ता 5 जून 2010 को 10:14 am बजे  

सार्थक लेख। आज की जलवायु आज का परिद्रिश्य स्वतः गवाह है कि पर्यावरण से खिलवाड़ का क्या हश्र होता है।

ब्लॉ.ललित शर्मा 8 जून 2010 को 7:30 pm बजे  

सार्थक लेख

डेली न्युज में आपकी पहली पोस्ट प्रकाशित होने पर शुभकामनाएं।

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