पर्यावरण बचाना है--सबको पेड़ लगाना है!!---धरती हरी भरी रहे हमारी--अब तो समझो जिम्मेदारी!! जल ही जीवन-वायू प्राण--इनके बिना है जग निष्प्राण!!### शार्ट एड्रेस "www.paryavaran.tk" से इस साईट पर आ सकते हैं

पर्यावरण पर लेख भेजने का अंतिम मौका 15 दिसम्बर 2010 -- ध्यान रहे कहीं चूक न जाएं।

>> सोमवार, 6 दिसंबर 2010

समस्त लेखकों को सूचना दी जाती है कि "बचपन और पर्यावरण" विषय पर लेख अपेक्षित संख्या में नहीं पहुंचे हैं। इसलिए एक मौका और देकर लेख भेजने की अंतिम तिथि को बढाकर 15 दिसम्बर 2010 किया जा रहा  है। इस बढे हुए समय का लाभ उठाएं। जिनका प्रकाशन हमारा पर्यावरण ब्लॉग पर किया जाएगा। लेख शीघ्र भेजें। प्रतियोगिता के विषय में जानकारी यहाँ पर लें। यह अंतिम मौका है दुबारा नहीं मिलेगा। शीघ्र लाभ उठाएं। पर्यावरण के प्रति अपनी जागरुकता का परिचय दें।

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प्रदूषण के डर से , ना निकला घर से ;

>> रविवार, 7 नवंबर 2010

प्रदूषण  के डर से ,
ना निकला घर से ;


पटाखों की लड़ियाँ ,
और फुलझड़ियाँ ,
सुहाने चमन  में ,
कहर  बन के बरसे ;
प्रदूषण  के डर से ,
ना निकला घर से ;

हर मोड़ पर है मधुशाला ,
हर हाथ में मस्ती का प्याला ;
कैसे बचाऊँ  तुम्हें ,
इस जहर से ;
प्रदूषण  के डर से ,
ना निकला घर से ;

कहाँ है दिवाली ,
कहाँ खुशहाली ;
उसे देखनें को ,
ये नैना तरसे ;
प्रदूषण  के डर से ,
ना निकला घर से ;

तूफां में जलते दीयों के नजारें ,
घनें बादलों में छिपे है सितारे ;
जाऊँ तो कैसे ,
पथरीली डगर  से ; 
प्रदूषण के डर से ,
ना निकला घर से ;

साल के बाद आयेगी फिर से दिवाली ,
झोली रहें ना किसी की खाली ;
ब्लॉग से ही बधाई हो ,
मेरी तरफ से  ;
प्रदूषण के डर से ,
ना निकला घर से ;

कृपया इस  कविता को यहाँ भी पढ़े

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दीप पर्व की शुभकामनाएं और ढेर सारी बधाई--"बचपन और पर्यावरण" पर लेख भेजें

>> शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं

आज पर्यावरण की हानि होने से ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्या से पूरी दुनिया को जुझना पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान सामने आ रहे हैं। हम पर्यावरण की रक्षा करें एवं आने वाली पी्ढी के लिए स्वच्छ वातावरण का निर्माण करें। पर्यावरण के प्रति जागरुक करने के लिए हम एक प्रतियोगिता का आयोजन कर रहे हैं।प्रतियोगिता में सम्मिलित होने के लिए सूचना एवं नियम इस प्रकार है।

विषय -- "बचपन और हमारा पर्यावरण"

प्रथम पुरस्कार
11000/= (ग्यारह हजार रुपए नगद)
एवं प्रमाण-पत्र

द्वितीय पुरस्कार
5100/= (इक्यावन सौ रुपए नगद)
एवं प्रमाण-पत्र

तृती्य पुरस्कार
2100/= (इक्की्स सौ रुपए नगद)
एवं प्रमाण-पत्र

सांत्वना पुरस्कार (10)
501/=(पाँच सौ एक रुपए नगद)
एवं प्रमाण-पत्र


1. इस प्रतियोगिता में 1 नवम्बर 2010 से 30 नवंबर 2010 तक आलेख भेजे जा सकते है.

2. प्रतियोगिता में सिर्फ़ दिए गए विषय पर ही आलेख सम्मिलित किए जाएंगे।

3. एक रचनाकार अपने अधिकतम 3 अप्रकाशित मौलिक आलेख भेज सकता है पुरस्कृत होने की स्थिति में  वह केवल एक ही पुरस्कार का हकदार होगा.

4. स्व रचित आलेख  1 नवम्बर 2010 से 30 नवंबर 2010 तक lekhcontest@gmail.com  पर भेज सकते हैं. कृपया साथ में मौलिकता का प्रमाण-पत्र एवं अपना एक अधिकतम १०० शब्दों में परिचय तथा तस्वीर भी संलग्न करें। नियमावली की कंडिका 7 से संबंध नहीं होने का का भी उल्लेख प्रमाण-पत्र में करें। आलेख कम से कम 500 एवं अधिकतम 1000 शब्दों में होने चाहिए।

आपसे निवेदन है कि प्रत्येक रचना को अलग अलग इमेल से भेजने की कृपा करें. यानि एक इमेल से एक बार मे एक ही रचना भेजे.

5. हमें प्राप्त रचनाओं मे से जो भी रचना प्रतियोगिता में शामिल होने लायक पायी जायेगी उसे हमारे सहयोगी ब्लाग "हमारा पर्यावरण" पर प्रकाशित कर दिया जायेगा, जो इस बात की सूचना होगी कि प्रकाशित रचना प्रतियोगिता में शामिल कर ली गई है।

6. 1 दिसंबर 2010 से प्रतियोगिता में सम्मिलित आलेखों का प्रकाशन  "हमारा पर्यावरण" पर प्रारंभ कर दिया जायेगा.

7. इस प्रतियोगिता में हमारा पर्यावरण, एसार्ड, एवं पर्यावरण मंत्रालय से संबंधित कोई भी व्यक्ति या उसका करीबी रिश्तेदार भाग लेने की पात्रता नहीं रखता।

8. इन रचनाओं पर  "हमारा पर्यावरण" का कापीराईट रहेगा. और कहीं भी उपयोग और प्रकाशन का अधिकार हमें होगा.

9. रचनाओं को पुरस्कृत करने का अधिकार सिर्फ़ और सिर्फ़ "हमारा पर्यावरण" के संचालकों के पास सुरक्षित रहेगा. इस विषय मे किसी प्रकार का कोई पत्र व्यवहार नही किया जायेगा और ना ही किसी को कोई जवाब दिया जायेगा.

10. इस प्रतियोगिता के समस्त अधिकार और निर्णय के अधिकार सिर्फ़  "हमारा पर्यावरण" के पास सुरक्षित हैं. प्रतियोगिता के नियम किसी भी स्तर पर परिवर्तनीय है.

11.पुरस्कार  IASRD द्वारा प्रायोजित हैं.

12. यह प्रतियोगिता पर्यावरण के प्रति जागरुकता लाने के लिए एवं हिंदी मे स्वस्थ लेखन को बढावा देने के उद्देश्य से आयोजित की गई है.
(नोट:-प्रतियोगिता में ब्लॉग जगत के अलावा अन्य भी भाग ले सकते हैं प्रतियोगी की आयु 18 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए)

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पर्यावरण पर लेख भेजें--हजारों के इनाम पाएं !

>> सोमवार, 25 अक्तूबर 2010

त्तीसगढ में जलावायु परिवर्तन के प्रति चेतना जगाने के लिए रायपुर जिले के समस्त स्कूलों में कार्यक्रम किए गए। अशोक बजाज जी के नेतृत्व में इस कार्यक्रम को अच्छा प्रतिसाद मिला। कार्यक्रम के लिए पहल IASRD के अध्यक्ष के डी गुप्ता जी ने की थी। हमारे भी मन में आया कि सेतु बंध की गिलहरी सदृश्य पर्यावरण जागरण के महायज्ञ में अपनी भी एक आहुति दें, ब्लॉग जगत में एक आलेख प्रतियोगिता का आयोजन किया जाए। इसकी चर्चा हमने अन्य मित्रों से की तो उन्होने भी अपना भरपुर सहयोग देने का वचन दिया। जिससे मेरा उत्साह वर्धन हुआ। हमारा उद्देश्य पर्यावरण के प्रति चेतना जागृति करना है। आज पर्यावरण की हानि होने से ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्या से पूरी दुनिया को जुझना पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान सामने आ रहे हैं। हम पर्यावरण की रक्षा करें एवं आने वाली पी्ढी के लिए स्वच्छ वातावरण का निर्माण करें। प्रतियोगिता में सम्मिलित होने के लिए सूचना एवं नियम इस प्रकार है।

विषय -- "बचपन और हमारा पर्यावरण"

प्रथम पुरस्कार
11000/= (ग्यारह हजार रुपए नगद)
एवं प्रमाण-पत्र

द्वितीय पुरस्कार
5100/= (इक्यावन सौ रुपए नगद)
एवं प्रमाण-पत्र

तृती्य पुरस्कार
2100/= (इक्की्स सौ रुपए नगद)
एवं प्रमाण-पत्र

सांत्वना पुरस्कार (10)
501/=(पाँच सौ एक रुपए नगद)
एवं प्रमाण-पत्र


1. इस प्रतियोगिता में 1 नवम्बर 2010 से 30 नवंबर 2010 तक आलेख भेजे जा सकते है.

2. प्रतियोगिता में सिर्फ़ दिए गए विषय पर ही आलेख सम्मिलित किए जाएंगे।

3. एक रचनाकार अपने अधिकतम 3 अप्रकाशित मौलिक आलेख भेज सकता है पुरस्कृत होने की स्थिति में  वह केवल एक ही पुरस्कार का हकदार होगा.

4. स्व रचित आलेख  1 नवम्बर 2010 से 30 नवंबर 2010 तक lekhcontest@gmail.com  पर भेज सकते हैं. कृपया साथ में मौलिकता का प्रमाण-पत्र एवं अपना एक अधिकतम १०० शब्दों में परिचय तथा तस्वीर भी संलग्न करें। नियमावली की कंडिका 7 से संबंध नहीं होने का का भी उल्लेख प्रमाण-पत्र में करें। आलेख कम से कम 500 एवं अधिकतम 1000 शब्दों में होने चाहिए।

आपसे निवेदन है कि प्रत्येक रचना को अलग अलग इमेल से भेजने की कृपा करें. यानि एक इमेल से एक बार मे एक ही रचना भेजे.

5. हमें प्राप्त रचनाओं मे से जो भी रचना प्रतियोगिता में शामिल होने लायक पायी जायेगी उसे हमारे सहयोगी ब्लाग "हमारा पर्यावरण" पर प्रकाशित कर दिया जायेगा, जो इस बात की सूचना होगी कि प्रकाशित रचना प्रतियोगिता में शामिल कर ली गई है।

6. 1 दिसंबर 2010 से प्रतियोगिता में सम्मिलित आलेखों का प्रकाशन  "हमारा पर्यावरण" पर प्रारंभ कर दिया जायेगा.

7. इस प्रतियोगिता में हमारा पर्यावरण, एसार्ड, एवं पर्यावरण मंत्रालय से संबंधित कोई भी व्यक्ति या उसका करीबी रिश्तेदार भाग लेने की पात्रता नहीं रखता।

8. इन रचनाओं पर  "हमारा पर्यावरण" का कापीराईट रहेगा. और कहीं भी उपयोग और प्रकाशन का अधिकार हमें होगा.

9. रचनाओं को पुरस्कृत करने का अधिकार सिर्फ़ और सिर्फ़ "हमारा पर्यावरण" के संचालकों के पास सुरक्षित रहेगा. इस विषय मे किसी प्रकार का कोई पत्र व्यवहार नही किया जायेगा और ना ही किसी को कोई जवाब दिया जायेगा.

10. इस प्रतियोगिता के समस्त अधिकार और निर्णय के अधिकार सिर्फ़  "हमारा पर्यावरण" के पास सुरक्षित हैं. प्रतियोगिता के नियम किसी भी स्तर पर परिवर्तनीय है.

11.पुरस्कार  IASRD द्वारा प्रायोजित हैं.

12. यह प्रतियोगिता पर्यावरण के प्रति जागरुकता लाने के लिए एवं हिंदी मे स्वस्थ लेखन को बढावा देने के उद्देश्य से आयोजित की गई है.
(नोट:-प्रतियोगिता में ब्लॉग जगत के अलावा अन्य भी भाग ले सकते हैं प्रतियोगी की आयु 18 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए)

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चिड़ियों की चहक और फूलों की महक के बिना जीवन नीरस: डॉ. रमन सिंह

>> शनिवार, 16 अक्तूबर 2010

जलवायु परिवर्तन प्रकृति से खिलवाड़ का ही नतीजा : बृजमोहन अग्रवाल

अभियान का मुख्य उद्देश्य बच्चों में पर्यावरण संरक्षण की भावना को संस्कार के रूप में विकसित करना है : अशोक बजाज

जलवायु परिवर्तन रोकने श्रेष्ठ सुझावों के लिए 250 स्कूली बच्चे पुरस्कृत


            मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने कहा है कि पेड़-पौधे, हवा-पानी, पंछी-पर्वत, खेत-खलिहान सब कुछ हमारे पर्यावरण का ही अभिन्न हिस्सा हैं। इनसे हमें जीवन की ऊर्जा मिलती है। पेड़ नहीं होंगे तो चिड़ियों की चहक और फूलों की महक भी नहीं होगी, जिनके बिना हमारा जीवन नीरस और निरर्थक हो जाएगा। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन के गंभीर संकट से देश और दुनिया को बचाने के लिए पर्यावरण जागरूकता का विशेष अभियान रायपुर शैक्षणिक जिले के स्कूलों में सफलतापूर्वक संचालित किया गया है। इसकी उत्साहजनक सफलता को देखते हुए अब इसे छत्तीसगढ़ के सभी स्कूलों में चलाया जाएगा, ताकि स्कूली बच्चों के माध्यम से इसका संदेश प्रत्येक घर-परिवार और जन-जन तक पहुंचे।

डॉ. रमन सिंह ने १४ अक्तूबर को अपने निवास पर जलवायु परिवर्तन को लेकर स्कूली बच्चों के जागरूकता अभियान के प्रथम चरण के अन्तर्गत सर्वश्रेष्ठ सुझाव देने वाले 250  स्कूली बच्चों को पुरस्कार वितरित करते हुए इस आशय के विचार व्यक्त किए। डॉ. सिंह ने छात्र-छात्राओं सहित सभी लोगों को शारदीय नवरात्रि की शुभकामनाएं दी। उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार के स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा केन्द्रीय भू-विज्ञान मंत्रालय और समाजसेवी संस्था आई.ए.एस.आर.डी.  नई दिल्ली के सहयोग से लगभग डेढ़ माह का यह अभियान विगत 28 अगस्त से कल 13 अक्टूबर तक रायपुर शैक्षणिक जिले के सभी विकासखण्डों में चिन्हांकित 50  समन्वय शालाओं (नोडल स्कूलों)  के माध्यम से उनके 241  स्कूलों में चलाया गया। पूरे अभियान में इन मिडिल स्कूलों, हाई स्कूलों और हायर सेकेण्डरी स्कूलों के लगभग 24  हजार बच्चों ने सक्रिय भागीदारी से पर्यावरण संरक्षण के संकल्प और संदेश को स्थानीय जनता के बीच प्रचारित किया। मुख्यमंत्री ने आज दोपहर अभियान के प्रथम चरण के समापन पर पुरस्कृत बच्चों को प्रमाण पत्र भी वितरित किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता स्कूल शिक्षा मंत्री श्री बृजमोहन अग्रवाल ने की। पर्यावरण जागरूकता कार्यक्रम के संयोजक और रायपुर के पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष श्री अशोक बजाज ने इस अवसर पर अभियान की गतिविधियों का विवरण दिया। छत्तीसगढ़ राज्य नागरिक आपूर्ति निगम के अध्यक्ष श्री लीलाराम भोजवानी भी कार्यक्रम में उपस्थित थे।

मुख्य अतिथि की आसंदी से डॉ.  रमन सिंह ने स्कूली बच्चों को संबोधित करते हुए इस अभियान की जोरदार शब्दों में प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि वास्तव में यह अभियान राज्य सरकार द्वारा इस वर्ष आम जनता की सक्रिय भागीदारी से शुरू किए गए 'पानी बचाओ अभियान'  और 'हरियर छत्तीसगढ़'  अभियान को आगे बढ़ाने में काफी मददगार साबित हुआ है। मुख्यमंत्री ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के प्रति स्कूली बच्चों में जागरूकता लाने का यह एक अच्छा प्रयास है। वृक्षारोपण करने, बिजली की बचत करने, पॉलीथिन के दुरूपयोग को रोकने जैसे कई कार्य देखने में छोटे जरूर लगते हैं,  लेकिन पर्यावरण संकट से निपटने में ऐसे कार्यो की सबसे बड़ी भूमिका होती है। स्वच्छ और ताजी हवा के झोंके,  नदियों का साफ पानी,  पेड़ों पर चहकते गौरैया, तोता, मैना और कोयल और यहां तक कि सांप और बिच्छु भी हमारी प्रकृति और जैव विविधता की सुरक्षा के लिए बहुत जरूरी हैं। मुख्यमंत्री ने अपने आवासीय परिसर का उल्लेख करते हुए कहा कि इस परिसर में विभिन्न प्रजातियों के लगभग 250 वृक्ष हैं और इनमें करीब 40 प्रकार के जीव-जन्तुओं,चिड़ियों और सांप और बिच्छु तक की चहल-पहल होती है। आम के मौसम में कोयल की कुहूक मन को छू जाती है। डॉ.  रमन सिंह ने कहा कि ऐसा ही परिवेश प्रत्येक गांव और शहर में होना चाहिए।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए स्कूल शिक्षा मंत्री श्री बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि पर्यावरण का संतुलन बिगड़ने के कारण आज पूरी दुनिया में जलवायु परिवर्तन का खतरा साफ देखा जा रहा है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्र का जल स्तर बढ़ रहा है और दुनिया के कई द्वीपों और छोटे देशों सहित अनेक शहरों के निकट भविष्य में जलमग्न होकर डूब जाने का अंदेशा वैज्ञानिकों ने व्यक्त किया है। छत्तीसगढ़ के संदर्भ में श्री अग्रवाल ने कहा कि यहां भी अब बेमौसम बरसात और खण्ड वर्षा होने लगी है। कभी बरसात के मौसम में इतनी उमस नहीं होती थी,  लेकिन अब बारिश के दिनों में लोग उमस से परेशान रहते हैं। स्वाईन फ्लू और डेंगू जैसी बीमारियों का कभी हम लोगों ने नाम भी नहीं सुना था,  लेकिन आज ये बीमारियां भी जन-स्वास्थ्य के लिए चुनौती बनकर आयी हैं। स्कूल शिक्षा मंत्री ने कहा कि यह सब प्रकृति से खिलवाड़ का ही नतीजा है कि आज हमें खाने के लिए अच्छे और स्वादिष्ट फल भी ठीक से नहीं मिल पाते। उन्होंने कहा कि ऐसे कठिन समय में पर्यावरण को बचाने के लिए हम सबको एकजुट होकर आगे आना होगा। श्री अग्रवाल ने कहा कि इस कार्य में हमारी नयी पीढ़ी के स्कूली बच्चों का योगदान बहुत महत्वपूर्ण होगा। यह रायपुर शिक्षा जिले के स्कूलों में चलाए गए अभियान से साबित हो गया है। अगर हम इस अभियान में स्कूली बच्चों को जोड़ेंगे,  तो उनके माता-पिता और परिवार के अन्य लोग भी इसमें प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से सहभागी बनेंगे। श्री अग्रवाल ने अभियान को रायपुर शिक्षा जिले में मिली सफलता का उल्लेख करते हुए कहा  कि मुख्यमंत्री  डॉ.रमन  सिंह  के  नेतृत्व  में  निकट  भविष्य में यह अभियान प्रदेश भर के स्कूलों में चलाया जाएगा। इसके लिए स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा दिशा-निर्देश जल्द जारी किए जाएंगे।

प्रारंभ में अभियान के संयोजक श्री अशोक बजाज ने रायपुर शिक्षा जिले में इसके अन्तर्गत हुए कार्यक्रमों पर अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री के आव्हान पर प्रदेश में इस वर्ष गर्मियों में पानी बचाओ अभियान और बारिश में हरियर छत्तीसगढ़ अभियान चलाया गया जिससे प्रेरणा लेकर रायपुर शिक्षा जिले में दोनों अभियानों के आधार पर पर्यावरण जागरूकता की कार्य योजना बनाकर जिले के विकासखण्डों में 50 नोडल शालाएं चिन्हांकित कर उनके जरिए 239  स्कूलों को इसमें जोड़ा गया। वैसे तो यह अभियान 28 अक्टूबर को माना बस्ती के शासकीय हायर सेकेण्डरी स्कूल से शुरू किया गया था और एक अक्टूबर को इसका औपचारिक समापन हुआ,  लेकिन अभियान को मिली भारी लोकप्रियता को देखकर जनता की विशेष मांग पर कल 13  अक्टूबर को ग्राम खोला और चण्डी के स्कूलों में भी जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस प्रकार यह अभियान लगभग डेढ़ माह तक चला। श्री बजाज ने कहा कि बच्चों में पर्यावरण संरक्षण की भावना को संस्कार के रूप में विकसित करना और दृष्टिकोण को व्यापक बनाना इस अभियान का मुख्य उद्देश्य है। उन्होंने कहा कि अभियान केवल वृक्षारोपण् तक सीमित नहीं था। इसमें बच्चों को पानी की बचत करने,  हवा की कीमत समझने, कुपोषण की रोकथाम और नशाबंदी के बारे में भी बताया गया। नोडल शालाओं के माध्यम से 241 स्कूलों के 25 हजार से अधिक बच्चों ने इसमें सक्रिय उपस्थिति दर्ज करायी। शुभारंभ कार्यक्रम में माना बस्ती के हायर सेकेण्डरी स्कूल में एक हजार बच्चों ने मानव श्रृंखला बनाकर पर्यावरण की रक्षा करने का संकल्प लिया। पूरे अभियान में हर विद्यार्थी को वन विभाग द्वारा एक-एक पौधा भी दिया गया और किस बच्चे ने किस प्रजाति का पौधा कहां लगाया है, इसका रिकार्ड भी रखा गया, ताकि बच्चे जीवन भर उसकी देखभाल कर सकें। प्रत्येक विद्यार्थी को एक प्रश्नावली दी गयी जिसमें जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए उनसे सुझाव मांगे गए। इनमें से सर्वश्रेष्ठ सुझाव देने वाले पांच-पांच बच्चों का चयन प्रत्येक स्कूल से किया गया, जिन्हें आज के कार्यक्रम में मुख्यमंत्री के हाथों पुरस्कृत किया गया है। इस अवसर जिला शिक्षा अधिकारी सहित रायपुर शिक्षा जिले के सभी विकासखण्डों के ब्लाक शिक्षा अधिकारी और संबंधित शालाओं के प्राचार्य तथा बड़ी संख्या में स्कूली बच्चे उपस्थित थे।

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वन्य प्राणियों की रक्षा कीजिए--डॉ आभा पान्डे

>> सोमवार, 27 सितंबर 2010

आज मानव स्वभाव से ही स्वार्थी व लालची होता जा रहा है। आज इन्सान अपने सारे रिश्ते नातों को भूल कर आगे की ओर बढ रहा है उसकी ये भावना इन्सानों को तो छोड़िये मूक प्राणियों पर भी कहर बरपा रही है। भरत जो अपनी वन संपदा से ओत प्रोत था आज वह अपनी इस संपदा से धीरे धीरे वंचित होता जा रहा है हमारा वन्य प्राणियों के प्रति अत्याचार जो कभी राजाओं के आखेट के रुप में कभी शिकारीयों के रुप में आहत हुआ है। जो जंगल कभी शेर की दहाडों से गूजता था जिनकी गिनती करना संभव नही था उसी जंगल के राजा को आज हम अंगुलियों पर गिन रहे हैं। जरा सोचिये यदि वन का राजा नहीं रहा तो क्या वन की शोभा फीकी नही पड़ जायेगी यदि हम किसी को जीवन दे नहीं सकते तो हमें जीवन छीनने का क्या अधिकार । इसी विचारधारा को मन में उठने दीजिये हमारे यही विचारों से वन का राजा ही नही अन्य वन्य प्राणी भी हमें कृतज्ञता भरी नजरों से देखेगें। वन्य प्राणियों की रक्षा व पर्यावरण के लिये हमें वनों की भी रक्षा करनी होगी

रायपुर

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"जल जो न होता तो ये जग जाता जल"

>> सोमवार, 13 सितंबर 2010

जल संरक्षण महाभियान पर विशेष 
चांदी सा चमकता ये नदिया का पानी , पानी की हर बूंद देती जिंदगानी !
अम्बर से बरसे जमीन पर मिले , नीर के बिना तो भैय्या काम ना चले ! ओ मेघा रे...
जल जो न होता तो ये जग जाता जल, गीत गाता चल ओ साथी गुनगुनाता चल !


फिल्म "गीत गाता चल"के इस गीत के गायक श्री जशपाल सिंह को वर्ष १९७५ में यह एहसास हो गया था कि २०१० आते आते हम कितने जल संकट से घिर जायेंगे। आज चारों तरफ जल संकट को लेकर चर्चाओं का दौर चल रहा है तब इस गीत के भावार्थ को समझना प्रासंगिक हो गया है। आम आदमी से लेकर सत्ता के शिखर पर बैठे सभी लोग जल संकट की चिंता में डूबे हैं। आज समूचा विश्व जल संकट से जूझ रहा है यहां तक कि भारत जैसे वनाच्छादित देश भी इससे अछूते नहीं हैं।हिम नदियां पिघल रही हैं,गंगोत्री पिघलकर प्रतिवर्ष 20  मीटर पीछे खिसक रही है। 
भारत-बांग्लादेश के मध्य स्थित विवादित द्वीप 'न्यू-मूर' जो 9 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला था, पूरी तरह समुद्र में समा गया है। 1954 के आंकड़ों के अनुसार यह समु्रद तल से 2-3 मीटर ऊंचाई पर था। सुंदरवन के अनेक द्वीपों का अस्तित्व खतरे में पड ग़या है। भारत की सीमा से लगे बंग्लादेश में कई क्षेत्रों के डूबने से प्रभावित लोग भारत में शरण ले सकते हैं। हमें याद है कि अक्टूबर 2009 में मालद्वीप को डूबने से बचाने के लिए वहां के राष्ट्रपति ने समुद्र के अंदर मंत्रिमंडल की बैठक करनी पड़ी थी। सदियों तक बाढ़,सूखा एवं अकाल के कारण जनता को जलसंकट एवं अन्न संकट से जूझना पड़ेगा। देश में गरीबी, बेकारी एवं भुखमरी की स्थिति निर्मित हो जाएगी। चारों तरफ डायरिया, मलेरिया एवं डेंगू जैसी घातक बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाएगा। लगातार सूखे के कारण मैदानी इलाकों से महापलायन  होगा।
दिल्ली,बंगलोर,हैदराबाद, अहमदाबाद, पुणे, रायपुर, भोपाल एवं इंदौर जैसे शहरों में जनसंख्या का दबाव बढ़ने से इन शहरों की आधारभूत सामाजिक एवं आर्थिक व्यवस्था चरमरा जाएगी। एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2050 तक  20 से 30  प्रतिशत के  तक पौधे तथा जानवरों की प्रजातियां विलुप्त  हो जाएंगी। वर्तमान में प्रति व्यक्ति पानी की खपत 1820 क्यूबिक मीटर है जो 2050 में घटकर 1140 क्यूबिक मीटर हो जायेगी। दरअसल यह दुष्परिणाम कोयला एवं तेल आधारित संयंत्रों के बेतहाशा इस्तेमाल के कारण हो रहा है। ए.डी.बी.  की एक रिर्पोट के अनुसार आगामी 25वर्षों में एशिया में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन तीन गुणा बढ़ जाएगा।
सूर्य की हानिकारक पराबैगनी किरणों से मानव जगत को होने वाली क्षति का हम सहज ही अनुमान लगा सकते हैं। यदि इस तथ्य पर गंभीरता से विचार नहीं किया गया तो वर्ष 2050तक दुनिया का तापमान 2 सेल्सियस बढ़ जाएगा तथा जलवायु परिवर्तन की गति बढ़ जाएगी। इस बदलाव के साथ प्राणी एवं वनस्पति जगत को सामंजस्य बैठा पाना मुश्किल होगा। यदि समय रहते उपाय सोचे जाएं तो इस भयावह संकट से उबरा जा सकता है। केवल चर्चा एवं चिंता से कुछ नहीं होगा,बल्कि इसके लिए हमें व्यावहारिक रुख अपनाना होगा। क्योंकि पृथ्वी के बढ़ते तापमान के लिए मनुष्य और केवल मनुष्य ही जिम्मेदार है। अत: मनुष्य को ही इसका उपाय ढूढ़ना होगा।
आने वाले समय में वैकल्पिक उर्जा स्रोतों का प्रचलन बढ़ाना होगा। उर्जा के वैकल्पिक स्रोतों के रूप में पवन उर्जा, सौर उर्जा एवं जैविक उर्जा का उपयोग कर के वातावरण में कार्बन डाइऑक्साईड की मात्रा को कम किया जा सकता है। इसके साथ ही कृषि व वन क्षेत्र में नई तकनीक का उपयोग कर हम इस संकट से उबर सकते हैं। आने वाले समय में कम बिजली खपत करने वाले लाईटिंग उपकरण तथा कम ईंधन से चलने वाली गाड़ियों का इस्तेमाल करना लाजिमी हो गया है। शासन स्तर पर भी तेजी से प्रयास करना होगा। विश्व की कुल आय का मात्र तीन प्रतिशत भी यदि जलवायु परिवर्तन की रोकथाम के लिए खर्च किया जाय तो वर्ष 2030 तक तापमान वृध्दि को 2 सेल्सियस तक रोका जा सकता है। छत्तीसगढ़ में इस गंभीर समस्या से निबटने के लिए शासन जल संरक्षण महा अभियान चला रही है। इस महाभियान के माध्यम से पेयजल,निस्तारी जल एवं सिंचाई जल के स्रोतों में वृध्दि का उपाय ढूंढा जा रहा है। मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह इस महाअभियान में स्वयं रुचि ले रहे हैं। उन्होंने वर्षा के जल को संग्रहित करने का प्लान बनाया है। यह महाभियान अनुकरणीय है।

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पर्यावरण संरक्षण में शिक्षक की महती भूमिका

>> सोमवार, 6 सितंबर 2010

डॉक्टर सर्व पल्ली राधा कृष्णन का जन्म दिन शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाता है। डॉक्टर सर्वपल्ली राधा कृष्ण की इच्छा थी कि उनका जन्म दिन शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाय। आज 5 सितम्बर को गुरुवों के सम्मान दिवस के रुप में वही मान्यता मिल चुकी है, जो हिन्दु कैलेंडर में गुरु पूर्णिमा की है।वैदिक काल में शिक्षा गुरुकुलों के माध्यम से दी जाती थी। जहां विद्यार्थी को सम्पूर्ण शिक्षा दी जाती थी। विद्यार्थियों को शिक्षा आचार्यों के माध्यम से मिलती थी। वैसे बालक की प्रथम गुरु माता को कहा गया है। वेद कहते हैं "माता निर्माता भवति" अर्थात माता ही निर्माण करती है। उसके पश्चात गुरु को द्वितीय शिक्षक की मान्यता मिली है। विद्यार्थी का प्रवेश गुरुकुल में श्रावणी पर्व को होता था। अर्थात श्रावण मास की पूर्णिमा को जहां उसके उपनयन संस्कार के साथ गुरुकुल प्रवेश कराया जाता था एक उत्सव के रुप में। विद्यार्थी के शिक्षा प्राप्ति की दिशा में यह प्रथम चरण माना जाता था।
आचार्य विष्णु शर्मा ने पंचतंत्र के माध्यम से विद्याथियों को शिक्षा देने के एक नवीन उपाय का प्रादुर्भाव किया। उन्होने रोचक ढंग से वनों एवं उसमें विचरण करने वाले पशु पक्षियों के माध्यम से राजकुमारों को शिक्षा दी। इस तरह शिक्षा देने का सबसे बड़ा कारण यह था कि विद्याध्ययन में रोचकता बनी रहे। विद्याध्ययन एक बोझ न बन जाए विद्यार्थी के लिए। नीति शास्त्र की शिक्षा भी इसके साथ-साथ मिलती रहे। क्योंकि संसार को सुचारु रुप से अनुशासन के साथ चलाने के लिए नैतिकता की प्रमुख आवश्यकता होती है। जिससे प्रजा शासनारुप व्यवहार करती है।
आचार्य विष्णु शर्मा ने विद्यार्थियों के अध्ययन में वन एवं वन्य प्राणियों का प्रयोग किया। इसका प्रमुख कारण यह था कि विद्यार्थी अपने परिवेश के साथ भी जुड़ा रहे। अपने वातावरण के साथ भी जुड़ा रहे। जिससे उसे पर्यावरण की रक्षा करने की सीख भी मिले। क्योंकि वनों एवं वन्य प्राणियों के संरक्षण से हमारा वातावरण शुद्ध एवं निवास के लायक रह सकता है। इस विषय पर हमारे मनीषि पूर्व में शोध कर चुके थे। वैदिक काल में जीविका वनों पर आधारित थी।
पर्यावरण के प्रति जागरुकता में शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका थी। जब से शिक्षा के क्षेत्र में मैकाले पद्धति ने प्रवेश किया, तब से प्राचीन ग्रंथों के अध्यापन प्रतिबंध लगा दिया गया और यह पद्धति अंग्रेजों के जाने के बाद भी अनवरत जारी है। जिससे विद्यार्थी बचपन से पर्यावरण की शिक्षा से विमुख रहे। शिक्षकों ने भी पर्यावरण संरक्षण के प्रति विद्यार्थियों को जागरुक करने कोई विशेष भूमिका नहीं निभाई जिसके फ़लस्वरुप पर्यारवरण को इतना ज्यादा नुकसान हुआ कि शहर और गाँव दोनो ही प्रभावित हुए हैं।
"केरा तबहिं न चेतिया जब ढींग लागी बेर" यह उक्ति यहां पर चरितार्थ होती है। अंधाधुंध वन काटे गए, पहाड़ों का सीना चीर एवं धरती के गर्भ से खनिजों का दोहन किया गया। कल कारखानों के अवशिष्ट पदार्थों पूण्य सलिला नदियों में बहाया गया। जिससे नदियाँ भी प्रदुषित हुई। जिसका परिणाम यह हुआ कि आज हमें स्वच्छ जल मिलना भी कठिन है। हमारे जलों के स्रोत सूख रहे हैं। जल स्तर तलहटी में जा रहा है। पानी के लिए त्राहि-त्राहि मची हूई है। आगे चल कर पर्यावरण के खिलवाड़ करने एवं शिक्षकों तथा शासन की उदासीनता के फ़लस्वरुप हमें भयंकर स्थिति का सामना करना पड़ेगा।
इसलिए शिक्षक दिवस के अवसर सभी शिक्षक अपनी जिम्मेदारी को समझें एवँ पर्यावरण के प्रति विद्याथियों को शिक्षित करें। जिससे उनमें पर्यावरण की रक्षा करने की जागरुकता आए। यह कार्य अत्यावश्यक इसलिए है कि विद्यार्थी के कोमल मन मस्तिष्क पर  बचपन में प्राप्त ज्ञान की अमिट छाप रह्ती है और वह इसे जीवन भर नहीं भूलता। इसलिए पर्यावरण  संरक्षण में शिक्षक की महती भूमिका है, इससे इंकार नही किया जा सकता।

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पृथ्वी को बचाएं--पॉलीथिन का बहिष्कार करें

>> शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

हमारी आजादी को ६३ वर्ष बीत चुके हैं. इस अवधि में पर्यावरण को बहुत अधिक नुकसान हुआ है. जंगल कटे हैं, पहाड़ों को खोदा गया, धरती के गर्भ से खनिज का उत्खनन द्रुत गति से हुआ है. जिसके कारण पर्यावरण संतुलन बिगड़ा है. जलवायु परिवर्तन पर इसका काफी असर पड़ा है. विकास के नाम पर प्राकृतिक क्षरण द्रुत गति से हुआ है. प्रकृति से सिर्फ प्राप्त करने की कोशिश की गयी, लेकिन उसके संरक्षण के लिए कोई स्थायी उपाय नहीं तय किया गया. विकास के साथ एक समस्या प्लास्टिक के रुप में हमारे सामने आई। जिस समय प्लास्टिक का निर्माण हुआ होगा उस समय इससे जुड़ी समस्याओं पर ध्यान न देकर इसके उपयोग पर ही ध्यान केन्द्रित किया गया। लेकिन अब प्लास्टिक और पॉलीथिन एक बहुत बड़ी समस्या पर्यावरण एवं प्राणी जीवन के बन गया है।
सबसे अधिक नुकसान तो पालीथिन के थैलियों से हुआ है। इससे पशुओं की हानि बहुतायत में हो रही है। पालीथिन के बैग में तो हम सामान ले आते हैं और उसे कुड़े के ढेर में फ़ेंक देते हैं, जानवर लालच में आकर उसे खा जाता है और उसका जीवन खतरे में पड़ जाता है तथा उसकी मौत तक हो जाती है। पॉलीथिन का कचरा खत्म होने में बहुत समय लगता है तथा इसे लोग कुड़े कचरे से चुग कर विनिर्माण के लिए कबाड़ियों को बेच देते हैं।--पालीथिन को जलाने से कार्बन डाईऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड एवं डाईऑक्सीन्स जैसी विषैली गैसें उत्सर्जित होती हैं. इनसे सांस, त्वचा आदि की बीमारियां होने की आशंका बढ़ जाती है. 
एक अध्ययन में बताया गया है कि पालीथिन एवं प्लास्टिक के विषैले पन के कारण इसके अधिक सम्पर्क में रहने वाली स्त्रियों के गर्भ में शिशु का विकास रुक जाता है तथा अविकसित संतान पैदा होने का खतरा बढ जाता है। प्लास्टिक प्रजनन अंगों  को भी नुकसान पहुंचा रहा है। इसमें प्रयोग होने वाला बिस्फेनॉल रसायन शरीर में डायबिटीज व लिवर एंजाइम को असामान्य कर देता है. जिससे डायबिटीज के मरीजों की संख्या लगातार बढ रही है। इसके कचरे के दुष्प्रभाव के कारण लाखो जीवों की मौत एक वर्ष में हो जाती है। ओजोन की परत में हुए छेद का मुख्य कारण प्लास्टिक को ही माना जा रहा है।
नास्त्रेदमस की भविष्यवाणी के अध्ययन करने वालों ने बताया है कि उसमें मानव जाति का संहार आग से जलने से बताया है। हो सकता है उसकी भविष्यवाणी सच हो जाए। क्योंकि आज संसार के हर घर में ज्वलनशील प्लास्टिक का सामान है जो बहुत जल्दी आग पकड़ता है। पहले मिट्टी के घरों में जलने लायक सामान सिर्फ़ कपड़े अनाज और मकान की लकड़ियाँ ही होती थी। लेकिन जब से घरों में प्लास्टिक ने प्रवेश किया है तब से आग लगने पर कुछ मिनटों में घर जल कर राख हो जाता है। फ़ायर ब्रिगेड पहुंचने से पहले ही सब खत्म हो चुका होता है।
अब समय आ गया है प्लास्टिक के बहिष्कार करने का। उसका कम से कम याने न्युनतम उपयोग करने का। अगर हम जागरुक हो जाते हैं तो अवश्य ही इस बहुत बड़ी आपदा से बचा जा सकता है। हमें पुन: कागज के बैगों की तरफ़ जाना होगा। इससे लोगों को रोजगार भी मिलेगा और पर्यावरण की रक्षा भी होगी। पर्यावरण को बचाना हमारा मुख्य ध्येय होना चाहिए। पृथ्वी की हरीतिमा को हमें बचाना है। पर्यावरण के प्रदुषण को खत्म नहीं कर सकते तो कम अवश्य करना है। हम प्लास्टिक उपयोग स्वयं ही कम करें तथा अपने इष्ट मित्रों को इसका उपयोग कम करने सलाह दे। प्रकृति के प्रति यह हमारा नैतिक दायित्व बनता है। क्यों करेंगे ना! प्लास्टिक का उपयोग कम?

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पर्यावरणीय प्रदूषण रोकना मानव का कर्तव्य

>> शनिवार, 5 जून 2010

मनुष्य अपने वातावरण की उपज है,इसलिए मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में स्वच्छ वातावरण जरूरी है। लेकिन जब प्रश्न पर्यावरण का उठता है तो यह जरुरत और भी बढ जाती है। वास्तव में जीवन और पर्यावरण का अटूट संबंध है। पर्यावरण का शाब्दिक अर्थ हमारे चारों ओर छाया आवरण है, प्रकृति में जल,वायु, भूमि, पेड़-पौधे, जीव-जन्तु में एक संतुलन कायम है। यह संतुलन ही प्राणी मात्र के जीवन का आधार है। प्रकृति की अनुकूलता पर ही मानव सभ्यता का विकास निर्भर करता है। प्राचीन काल से ही मानव अपने रहने की जगह तथा उसके आस-पास के वातावरण को स्वच्छ एवं हानिकारक तत्वों से मुक्त करता आ रहा है। परन्तु आधुनिक मानव की आत्मघाती प्रवृत्ति की वजह से वर्तमान युग में पर्यावरण तथा परिस्थितियों के प्रति जागरुकता को बढाने की सर्वाधिक जरुरत महसूस की जा रही है।

प्राकृतिक वातावरण की सुरक्षा तथा परिस्थितिकी संतुलन की अवधारणा बेशक बढ गयी है परन्तु इसकी आवश्यक्ता से इंकार नहीं किया जा सकता। मानव जिस प्राकृतिक वातावरण में पलता है,बडा होता है तथा अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए संघर्ष करता है, उस प्रकृति के कई घटक हैं। इन सभी घटकों की संरचना आपस में काफ़ी जटिल है।प्राकृतिक रुप से ही इन घटकों की आपस में कुछ मूलभूत सिद्धातों के आधार पर परस्पर सम्बद्धता पर निर्भरता है। मानव मात्र के अस्तित्व का सारा दारोमदार इन्ही तत्वों के प्राकृतिक संतुलन पर काफ़ी हद तक निर्भर करता है।

हमें सभी परिस्थितियों सांस लेने के लिए ताजी हवा, शुद्ध जल, कोलाहल मुक्त वातावरण तथा भोजन के लिए आहार मिलना चाहिए। परन्तु अफ़सोस की बात यह है कि हमें प्रदुषित वायु, प्रदुषित जल, कोलाहल पूर्ण प्रदुषित वातावरण में ही रहने को मजबूर होना पड़ रहा है। इसलिए इस अमुल्य निधि के संरक्षण का दायित्व भी स्वत: मानव समाज पर ही है। इस दृष्टि से इस क्षेत्र में संतु्लन बनाए रखना एवं संरक्षण के दायित्व का निर्वाह  करने हेतु सामान्य जन में पर्यावरणीय चेतना का विकास जरुरी है। साथ ही साथ पर्यावरणीय प्रदूषण की रोकथाम करना आवश्यक कर्तव्य बनता है।

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पर्यावरण संरक्षण हमारा कर्तव्य ही नहीं, धर्म भी है

>> रविवार, 9 मई 2010

हमारा पर्यावरण का उद्देश्य धरती पर हो रहे पर्यावरण के क्षरण के प्रति जागरुकता लाना है। इस ब्लाग पर हम प्रयावरण सबंधी लेखों का प्रकाशन करेंगे तथा उन्हे स्थान देंगे। पर्यावरण के प्रदूषण से वातावरण में निरंतर बदलाव हो रहा है। गर्मी, सर्दी, वर्षा आदि ॠतुओं के समय में परिवर्तन हो रहा है। समय चक्र पर पर्यावरण प्रदुषण का असर पड़ रहा है।

जहां वर्षा-शीत-गर्मी अधिक होती थी वहां न्युनता हो गयी है, मानसून कहीं पर समय से पहले आ जाता है कहीं निर्धारित समय के पश्चात आता है। जिससे फ़सल चक्र में परिवर्तन हो रहा है। किसान को इससे नुकसान उठाना पड़ रहा है। समय पर पानी उपलब्ध नहीं हो पाता और फ़सल सूख  जाती है।

हमने देखा है कि बचपन में कि घरों में मच्छर नहीं होते थे। लोग मलेरिया आदि बिमारी से कम ग्रसित होते थे। जनसंख्या बढने के साथ आवास भी बढे, लेकिन गंदे पानी के निकास की उचित व्यवस्था न होने से नालियों में मच्छरों के पनपने की संभावना बढ़ जाती है। गंदी नालियों एवं ठहरे हुए पानी में अंडे देने के कारण मच्छर तीव्रता से बढते हैं, जिससे जल जनित तथा मच्छर जनित रोग बढने की आशंका बलवती हो जाती है।

वातावरण में धूल धुंवा होने से अस्थमा एवं चर्म रोग के मरीज नित बढते जा रहे हैं। पेड़ ना होने से यह नुकसान उठाना पड़ रहा है। जो वातावरण हमारे पु्र्वजों ने हमें विरासत के रुप में दिया है जी्ने के लिए, हमारा भी कर्तव्य बनता है कि हम भी वैसा ही वातावरण अपनी आने वाली पीढी को दें। जिससे वे एक रोग मुक्त वातावरण में जी सकें।
पर्यावरण संरक्षण हमारा कर्तव्य ही नहीं, धर्म भी है। आइए इसे बचाने में सहयोग करें। यह मेरी प्रथम पोस्ट है आपका सहयोग अपेक्षित है।

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