पर्यावरण बचाना है--सबको पेड़ लगाना है!!---धरती हरी भरी रहे हमारी--अब तो समझो जिम्मेदारी!! जल ही जीवन-वायू प्राण--इनके बिना है जग निष्प्राण!!### शार्ट एड्रेस "www.paryavaran.tk" से इस साईट पर आ सकते हैं

वन्य प्राणियों की रक्षा कीजिए--डॉ आभा पान्डे

>> सोमवार, 27 सितंबर 2010

आज मानव स्वभाव से ही स्वार्थी व लालची होता जा रहा है। आज इन्सान अपने सारे रिश्ते नातों को भूल कर आगे की ओर बढ रहा है उसकी ये भावना इन्सानों को तो छोड़िये मूक प्राणियों पर भी कहर बरपा रही है। भरत जो अपनी वन संपदा से ओत प्रोत था आज वह अपनी इस संपदा से धीरे धीरे वंचित होता जा रहा है हमारा वन्य प्राणियों के प्रति अत्याचार जो कभी राजाओं के आखेट के रुप में कभी शिकारीयों के रुप में आहत हुआ है। जो जंगल कभी शेर की दहाडों से गूजता था जिनकी गिनती करना संभव नही था उसी जंगल के राजा को आज हम अंगुलियों पर गिन रहे हैं। जरा सोचिये यदि वन का राजा नहीं रहा तो क्या वन की शोभा फीकी नही पड़ जायेगी यदि हम किसी को जीवन दे नहीं सकते तो हमें जीवन छीनने का क्या अधिकार । इसी विचारधारा को मन में उठने दीजिये हमारे यही विचारों से वन का राजा ही नही अन्य वन्य प्राणी भी हमें कृतज्ञता भरी नजरों से देखेगें। वन्य प्राणियों की रक्षा व पर्यावरण के लिये हमें वनों की भी रक्षा करनी होगी

रायपुर

Read more...

"जल जो न होता तो ये जग जाता जल"

>> सोमवार, 13 सितंबर 2010

जल संरक्षण महाभियान पर विशेष 
चांदी सा चमकता ये नदिया का पानी , पानी की हर बूंद देती जिंदगानी !
अम्बर से बरसे जमीन पर मिले , नीर के बिना तो भैय्या काम ना चले ! ओ मेघा रे...
जल जो न होता तो ये जग जाता जल, गीत गाता चल ओ साथी गुनगुनाता चल !


फिल्म "गीत गाता चल"के इस गीत के गायक श्री जशपाल सिंह को वर्ष १९७५ में यह एहसास हो गया था कि २०१० आते आते हम कितने जल संकट से घिर जायेंगे। आज चारों तरफ जल संकट को लेकर चर्चाओं का दौर चल रहा है तब इस गीत के भावार्थ को समझना प्रासंगिक हो गया है। आम आदमी से लेकर सत्ता के शिखर पर बैठे सभी लोग जल संकट की चिंता में डूबे हैं। आज समूचा विश्व जल संकट से जूझ रहा है यहां तक कि भारत जैसे वनाच्छादित देश भी इससे अछूते नहीं हैं।हिम नदियां पिघल रही हैं,गंगोत्री पिघलकर प्रतिवर्ष 20  मीटर पीछे खिसक रही है। 
भारत-बांग्लादेश के मध्य स्थित विवादित द्वीप 'न्यू-मूर' जो 9 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला था, पूरी तरह समुद्र में समा गया है। 1954 के आंकड़ों के अनुसार यह समु्रद तल से 2-3 मीटर ऊंचाई पर था। सुंदरवन के अनेक द्वीपों का अस्तित्व खतरे में पड ग़या है। भारत की सीमा से लगे बंग्लादेश में कई क्षेत्रों के डूबने से प्रभावित लोग भारत में शरण ले सकते हैं। हमें याद है कि अक्टूबर 2009 में मालद्वीप को डूबने से बचाने के लिए वहां के राष्ट्रपति ने समुद्र के अंदर मंत्रिमंडल की बैठक करनी पड़ी थी। सदियों तक बाढ़,सूखा एवं अकाल के कारण जनता को जलसंकट एवं अन्न संकट से जूझना पड़ेगा। देश में गरीबी, बेकारी एवं भुखमरी की स्थिति निर्मित हो जाएगी। चारों तरफ डायरिया, मलेरिया एवं डेंगू जैसी घातक बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाएगा। लगातार सूखे के कारण मैदानी इलाकों से महापलायन  होगा।
दिल्ली,बंगलोर,हैदराबाद, अहमदाबाद, पुणे, रायपुर, भोपाल एवं इंदौर जैसे शहरों में जनसंख्या का दबाव बढ़ने से इन शहरों की आधारभूत सामाजिक एवं आर्थिक व्यवस्था चरमरा जाएगी। एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2050 तक  20 से 30  प्रतिशत के  तक पौधे तथा जानवरों की प्रजातियां विलुप्त  हो जाएंगी। वर्तमान में प्रति व्यक्ति पानी की खपत 1820 क्यूबिक मीटर है जो 2050 में घटकर 1140 क्यूबिक मीटर हो जायेगी। दरअसल यह दुष्परिणाम कोयला एवं तेल आधारित संयंत्रों के बेतहाशा इस्तेमाल के कारण हो रहा है। ए.डी.बी.  की एक रिर्पोट के अनुसार आगामी 25वर्षों में एशिया में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन तीन गुणा बढ़ जाएगा।
सूर्य की हानिकारक पराबैगनी किरणों से मानव जगत को होने वाली क्षति का हम सहज ही अनुमान लगा सकते हैं। यदि इस तथ्य पर गंभीरता से विचार नहीं किया गया तो वर्ष 2050तक दुनिया का तापमान 2 सेल्सियस बढ़ जाएगा तथा जलवायु परिवर्तन की गति बढ़ जाएगी। इस बदलाव के साथ प्राणी एवं वनस्पति जगत को सामंजस्य बैठा पाना मुश्किल होगा। यदि समय रहते उपाय सोचे जाएं तो इस भयावह संकट से उबरा जा सकता है। केवल चर्चा एवं चिंता से कुछ नहीं होगा,बल्कि इसके लिए हमें व्यावहारिक रुख अपनाना होगा। क्योंकि पृथ्वी के बढ़ते तापमान के लिए मनुष्य और केवल मनुष्य ही जिम्मेदार है। अत: मनुष्य को ही इसका उपाय ढूढ़ना होगा।
आने वाले समय में वैकल्पिक उर्जा स्रोतों का प्रचलन बढ़ाना होगा। उर्जा के वैकल्पिक स्रोतों के रूप में पवन उर्जा, सौर उर्जा एवं जैविक उर्जा का उपयोग कर के वातावरण में कार्बन डाइऑक्साईड की मात्रा को कम किया जा सकता है। इसके साथ ही कृषि व वन क्षेत्र में नई तकनीक का उपयोग कर हम इस संकट से उबर सकते हैं। आने वाले समय में कम बिजली खपत करने वाले लाईटिंग उपकरण तथा कम ईंधन से चलने वाली गाड़ियों का इस्तेमाल करना लाजिमी हो गया है। शासन स्तर पर भी तेजी से प्रयास करना होगा। विश्व की कुल आय का मात्र तीन प्रतिशत भी यदि जलवायु परिवर्तन की रोकथाम के लिए खर्च किया जाय तो वर्ष 2030 तक तापमान वृध्दि को 2 सेल्सियस तक रोका जा सकता है। छत्तीसगढ़ में इस गंभीर समस्या से निबटने के लिए शासन जल संरक्षण महा अभियान चला रही है। इस महाभियान के माध्यम से पेयजल,निस्तारी जल एवं सिंचाई जल के स्रोतों में वृध्दि का उपाय ढूंढा जा रहा है। मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह इस महाअभियान में स्वयं रुचि ले रहे हैं। उन्होंने वर्षा के जल को संग्रहित करने का प्लान बनाया है। यह महाभियान अनुकरणीय है।

Read more...

पर्यावरण संरक्षण में शिक्षक की महती भूमिका

>> सोमवार, 6 सितंबर 2010

डॉक्टर सर्व पल्ली राधा कृष्णन का जन्म दिन शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाता है। डॉक्टर सर्वपल्ली राधा कृष्ण की इच्छा थी कि उनका जन्म दिन शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाय। आज 5 सितम्बर को गुरुवों के सम्मान दिवस के रुप में वही मान्यता मिल चुकी है, जो हिन्दु कैलेंडर में गुरु पूर्णिमा की है।वैदिक काल में शिक्षा गुरुकुलों के माध्यम से दी जाती थी। जहां विद्यार्थी को सम्पूर्ण शिक्षा दी जाती थी। विद्यार्थियों को शिक्षा आचार्यों के माध्यम से मिलती थी। वैसे बालक की प्रथम गुरु माता को कहा गया है। वेद कहते हैं "माता निर्माता भवति" अर्थात माता ही निर्माण करती है। उसके पश्चात गुरु को द्वितीय शिक्षक की मान्यता मिली है। विद्यार्थी का प्रवेश गुरुकुल में श्रावणी पर्व को होता था। अर्थात श्रावण मास की पूर्णिमा को जहां उसके उपनयन संस्कार के साथ गुरुकुल प्रवेश कराया जाता था एक उत्सव के रुप में। विद्यार्थी के शिक्षा प्राप्ति की दिशा में यह प्रथम चरण माना जाता था।
आचार्य विष्णु शर्मा ने पंचतंत्र के माध्यम से विद्याथियों को शिक्षा देने के एक नवीन उपाय का प्रादुर्भाव किया। उन्होने रोचक ढंग से वनों एवं उसमें विचरण करने वाले पशु पक्षियों के माध्यम से राजकुमारों को शिक्षा दी। इस तरह शिक्षा देने का सबसे बड़ा कारण यह था कि विद्याध्ययन में रोचकता बनी रहे। विद्याध्ययन एक बोझ न बन जाए विद्यार्थी के लिए। नीति शास्त्र की शिक्षा भी इसके साथ-साथ मिलती रहे। क्योंकि संसार को सुचारु रुप से अनुशासन के साथ चलाने के लिए नैतिकता की प्रमुख आवश्यकता होती है। जिससे प्रजा शासनारुप व्यवहार करती है।
आचार्य विष्णु शर्मा ने विद्यार्थियों के अध्ययन में वन एवं वन्य प्राणियों का प्रयोग किया। इसका प्रमुख कारण यह था कि विद्यार्थी अपने परिवेश के साथ भी जुड़ा रहे। अपने वातावरण के साथ भी जुड़ा रहे। जिससे उसे पर्यावरण की रक्षा करने की सीख भी मिले। क्योंकि वनों एवं वन्य प्राणियों के संरक्षण से हमारा वातावरण शुद्ध एवं निवास के लायक रह सकता है। इस विषय पर हमारे मनीषि पूर्व में शोध कर चुके थे। वैदिक काल में जीविका वनों पर आधारित थी।
पर्यावरण के प्रति जागरुकता में शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका थी। जब से शिक्षा के क्षेत्र में मैकाले पद्धति ने प्रवेश किया, तब से प्राचीन ग्रंथों के अध्यापन प्रतिबंध लगा दिया गया और यह पद्धति अंग्रेजों के जाने के बाद भी अनवरत जारी है। जिससे विद्यार्थी बचपन से पर्यावरण की शिक्षा से विमुख रहे। शिक्षकों ने भी पर्यावरण संरक्षण के प्रति विद्यार्थियों को जागरुक करने कोई विशेष भूमिका नहीं निभाई जिसके फ़लस्वरुप पर्यारवरण को इतना ज्यादा नुकसान हुआ कि शहर और गाँव दोनो ही प्रभावित हुए हैं।
"केरा तबहिं न चेतिया जब ढींग लागी बेर" यह उक्ति यहां पर चरितार्थ होती है। अंधाधुंध वन काटे गए, पहाड़ों का सीना चीर एवं धरती के गर्भ से खनिजों का दोहन किया गया। कल कारखानों के अवशिष्ट पदार्थों पूण्य सलिला नदियों में बहाया गया। जिससे नदियाँ भी प्रदुषित हुई। जिसका परिणाम यह हुआ कि आज हमें स्वच्छ जल मिलना भी कठिन है। हमारे जलों के स्रोत सूख रहे हैं। जल स्तर तलहटी में जा रहा है। पानी के लिए त्राहि-त्राहि मची हूई है। आगे चल कर पर्यावरण के खिलवाड़ करने एवं शिक्षकों तथा शासन की उदासीनता के फ़लस्वरुप हमें भयंकर स्थिति का सामना करना पड़ेगा।
इसलिए शिक्षक दिवस के अवसर सभी शिक्षक अपनी जिम्मेदारी को समझें एवँ पर्यावरण के प्रति विद्याथियों को शिक्षित करें। जिससे उनमें पर्यावरण की रक्षा करने की जागरुकता आए। यह कार्य अत्यावश्यक इसलिए है कि विद्यार्थी के कोमल मन मस्तिष्क पर  बचपन में प्राप्त ज्ञान की अमिट छाप रह्ती है और वह इसे जीवन भर नहीं भूलता। इसलिए पर्यावरण  संरक्षण में शिक्षक की महती भूमिका है, इससे इंकार नही किया जा सकता।

Read more...

  © Blogger template Webnolia by Ourblogtemplates.com 2009

Back to TOP