प्रदूषण के डर से , ना निकला घर से ;
>> रविवार, 7 नवंबर 2010
प्रदूषण के डर से ,
ना निकला घर से ;
पटाखों की लड़ियाँ ,
और फुलझड़ियाँ ,
सुहाने चमन में ,
कहर बन के बरसे ;
प्रदूषण के डर से ,
ना निकला घर से ;
हर मोड़ पर है मधुशाला ,
हर हाथ में मस्ती का प्याला ;
कैसे बचाऊँ तुम्हें ,
इस जहर से ;
प्रदूषण के डर से ,
ना निकला घर से ;
कहाँ है दिवाली ,
कहाँ खुशहाली ;
उसे देखनें को ,
ये नैना तरसे ;
प्रदूषण के डर से ,
ना निकला घर से ;
तूफां में जलते दीयों के नजारें ,
घनें बादलों में छिपे है सितारे ;
जाऊँ तो कैसे ,
पथरीली डगर से ;
प्रदूषण के डर से ,
ना निकला घर से ;
साल के बाद आयेगी फिर से दिवाली ,
झोली रहें ना किसी की खाली ;
ब्लॉग से ही बधाई हो ,
मेरी तरफ से ;
प्रदूषण के डर से ,
ना निकला घर से ;
कृपया इस कविता को यहाँ भी पढ़े
9 टिप्पणियाँ:
आपकी चिंता जायज है।
लेकिन आज तो घर से निकलना पड़ेगा।
मातर जो है:)
अशोक जी
आपका ब्लाग मुझे अच्छा लगा आज की पोस्ट में लिंक किया है
a href="http://bharatbrigade.com पर
बहुत सुंदर रचना ...
sparkindians.blogspot.com
प्रदूषण का डर हर मन में जगाना है,
पर्यावरण से प्रेम सबका सपना बनाना है।
इस अभियान में आपको बहुत आगे तक जाना है
,
हमारा साथ आपके साथ है्.....
बहुत सुंदर रचना ...
आपका ब्लाग मुझे अच्छा लगा
गहरे और सार्थक भाव।
---------
इंटेलीजेन्ट ब्लॉगिंग अपनाऍं, बिना वजह न चिढ़ाऍं।
बहुत ही सुंदर अंदाज़ मैं पेश किया है.
बहुत सुंदर रचना!
lajawab rachana........
samay nikaal kar aaj kee post par jo maine site dalee hai use har point se padiyega....
A B C D OPTION .
dekhiye chahe to kya nahee kiya ja sakta..........
bangalore ke kuch noujavano ne prashanseey kadam uthae hai.........
ise link ko aap bhee sabhee ko bhej kar aandolan me hath bataiye.........
gujarish hai.......
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