कुलवंत सिंह का आलेख --- पर्यावरण
>> बुधवार, 16 फ़रवरी 2011
उम्र : 42 साल
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पर्यावरण को प्रदूषण से बचाना नितांत आवश्यक है । पिछले कुछ वर्षों से हम प्रदूषण के कारण अनेक समस्याओं को झेल रहे हैं। इसका प्रमुख कारण है - प्लास्टिक निर्मित वस्तुओं, पैकिंग सामग्री और थैलियां जो कि प्रयोग के बाद यूं ही फेंक दी जाती हैं। प्लास्टिक को हम आज के युग की देन कह सकते हैं। सेलुलोज नाइट्रेट से पहली बार कृत्रिम प्लास्टिक तैयार किया गया था। इसका प्रयोग पिछले कई दशकों में बहुत तेजी से बढ़ा है। जिसके कारण हमारे सामने एक नया संकट उपस्थित हो गया है - पर्यावरण प्रदूषण का। प्लास्टिक को प्रयोग के बाद फेंकने के कारण यह समस्या अति गंभीर हो गई है । क्योंकि प्लास्टिक कई अन्य पदार्थों की तरह अपने आप विघटित नही होता है। Bio non degradable (स्वत: विघटित न) होने के कारण यह सदियों तक यूं ही पड़ा रहता है । पूरा देश इस समस्या से त्रस्त है । कुछ राज्यों ने तो प्लास्टिक की थैलियों के इस्तेमाल पर पाबंदी भी लगा दी है। कुछ पर्यटन क्षेत्रों में भी प्लास्टिक की वस्तुओं के प्रयोग पर पाबंदी है।
आखिर प्लास्टिक है क्या ? प्लास्टिक एक किस्म का ' पॉलिमर या बहुलक' है जो छोटे छोटे एककों या ' मोनोमर' बहुयौगिकों की रासायनिक क्रियाओं के परिणाम स्वरूप उत्पन्न होता है। प्लास्टिक जिन एकक या मोनोमर से बनता है उनमें से किसी के भी गुण उसमें नहीं होते। वह उनसे भिन्न अलग गुणों वाला पदार्थ होता है। प्राकृतिक रूप से भी पालिमर पाए जाते हैं। जैसे कि-रेशम और रबड़ आदि। प्लास्टिक विभिन्न प्रकार का हो सकता है। जैसे कि - पॉलिथिलीन या पॉलिथिन, पॉलिविनाइल क्लोराइड (पीवीसी), पॉलि एमाइड, पॉलिस्टाइरिन, एक्राइलोनाइट्रेट ब्यूटाडिन स्टाइरिन, पॉलिइथिलीन टैरिथेलेट इत्यादि। यह विभिन्न कार्यों में प्रयुक्त होती हैं। कम घनत्व वाले पॉलिथिन से थैलियां बनाई जाती हैं, ज्यादा घनत्व वाले पॉलिथिन से पीने के पानी के क्रेट बनाए जाते हैं। पीवीसी से पानी के पाइप, बिजली के तार इत्यादि बनाये जाते हैं। पॉलि एमाइड से डोरी, खिलौने आदि बनाये जाते हैं जबकि पॉलिस्टाइरिन पैकेजिंग में प्रयुक्त होता है। एक्राइलो नाइट्रेट ब्यूटाडिन स्टाइरिन से फोम वगैरह बनाये जाते हैं। प्लास्टिक आज हमारे जीवन के हर क्षेत्र में प्रयुक्त हो रहा है। प्लास्टिक की मांग दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है। इसके मुख्य कारण हैं - कम लागत, सस्ती दरों पर मिलना, किसी भी प्रकार के आकार में आसानी से बना सकना और हल्का होना। लेकिन प्लास्टिक की समस्या है - इसका नष्ट न होना। आसानी से नष्ट न होने की वजह से यह प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण बन गई है। प्लास्टिक के अंधाधुंध उपयोग के बाद इसे फेंक दिया जाता है। नष्ट न होने की वजह से यह कचरा उत्पादन का एक बड़ा कारण बन गया है।
तो फिर इसका समाधान क्या है? प्रयुक्त प्लास्टिक को यां तो जला दिया जाये, रीसाइकिल (पुनर्चक्रण) किया जाए या फिर जमीन में दबा दिया जाय। प्लास्टिक को जलाने से जो गैसें निकलती हैं वे अत्यंत हानिकारक हैं। जमीन में दबाने से भी यह नष्ट तो नहीं होता है। तो इसका एक ही उपाय है - पुनर्चक्रण। हमारी यहां हर जगह कचरा फेकने की आदत से हम देखते हैं कि हर जगह थैलियां, पानी की बोतलें, चाय के कप या ग्लास बिखरे दिखाई देते हैं। ये कचरा पर्यावरण के लिए खतरा हैं - प्लास्टिक कचरे से जल या मिट्टी तक आक्सीजन पहुंचने में रुकावट आती है। मिट्टी की उर्वरा शक्ति कम होती है। निकासी नालों को अवरूद्ध कर मल-जल निकासी या ड्रेनेज सिस्टम को ठप कर देते हैं। खाद्य सामग्रियों में प्रयुक्त होने के बाद फेंके गये प्लास्टिक के बैग कई बार पशु खा लेते हैं। जिससे उन्हे तरह तरह की बीमारियां हो जाती हैं। रंगीन प्लास्टिक थैलियां तो और भी नुकसानदायक हैं।
समस्या की गंभीरता से स्पष्ट हो जाता है कि इसका समाधान आसान नहीं है। कई राज्यों ने इसके लिए कानून बनाए हैं। जैसे 20माइक्रॉन से मोटी थैली का ही प्रयोग करें। ताकि इनके पुनर्चक्रण में आसानी हो। कुछ पर्यटन क्षेत्रों में तो इन पर पूरी तरह से पाबंदी है।
आइए हम भी देश को इस समस्या से निपटने में यथा संभव अपना सहयोग दें। एवं प्लास्टिक की वस्तुओं का प्रयोग कम से कम करें।
कुलवंत सिंह
1 टिप्पणियाँ:
पर्यावरण को बिगाडने में प्लास्टिक का बडा हाथ है .. इसके प्रयोग को कम करना हमारे लिए सबसे आवश्यक है .. एक सार्थक आलेख के लिए कुलवंत सिंह जी को बधाई!!
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