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पर्यावरण संरक्षण का मजाक--राम त्यागी

>> बुधवार, 13 अप्रैल 2011

राम त्यागी

मेरे बारे में 

मुरैना , ग्वालियर और मध्य प्रदेश के विभिन्न गावों और शहरों में बचपन और विद्यार्थी जीवन के अनमोल वर्ष गुजारने के बाद, दिल्ली , सिंगापुर जैसे अन्य महानगरो और देशो से गुजरते हुए आजकल अमेरिका के शिकागो के पास के एक कस्बे में कुछ सालो से डेरा डाले हुआ हूँ. मेरी नौकरी को मेहनत और लगन से कर रहा हूँ पर मेरा मन कहता है की जल्दी से छोड़ो कुछ और शार्थक करो, स्वच्छ राजनीतिक जीवन जीने का सपना है और लोगो के बीच रहकर उनके लिए काम कराने की तमन्ना है, लिखने और पड़ने में (विशेषकर भारत के बारे में) बहुत लगाव है, इसलिए ब्लॉग की दुनिया में आपके साथ हूँ. संयुक्त परिवार से आता हूँ, हिन्दी, हिंदुस्तान और भारतीय संस्कृति मेरे अभिन्न अंग है.

पर्यावरण संरक्षण का मजाक

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एक छोटा सा प्रोजेक्ट,  उसके क्रियान्वयन के लिए ढेरों मीटिंग, और उन सब मीटिंगों में अनगिनत प्रिंटआउट लेकर आते हुए लोग।  मीटिंग के अन्त में मिनट तो भेजे ही जायेंगे किसी के द्वारा अतः मीटिंग से  बाहर आते ही सारे कागज़ जो प्रिंट किये गये थे, फ़ेंक दिए जाते हैं।  फिर एक दस्तावेज (document)जब तक ड्राफ्ट से अपने पहले स्वरुप में पहुंचता है तब तक उसके रिव्यू में ही हजारों प्रिंट की हुई कॉपी खर्च हो जाती है चाहे उस दस्तावेज का फिर कभी उपयोग न हो। एक हलके से प्रोजेक्ट में इस तरह अनगिनत पता नहीं कितने कागज़ और उनको प्रिंट करने में असीम उर्जा खर्च कर दी जाती है। 
यह हाल है प्राईवेट कंपनियों का और बड़े बड़े बैंको का जो सरकारी कार्यालयों को अक्षम बोलते है और फिर खुद गो ग्रीन अभियान के राजदूत भी बनते हैं ! बेसुमार उर्जा और पैसा खर्च कर देते हैं हम आईटी के लोग मीटिंग के इन अभियानों में - हाथ में लैपटॉप, डेस्कटॉप,आई फोन, ब्लैकबरी होते हुए भी कितने पेपर बेरहमी से खर्च कर डालते हैं, शायद आईटी और बैंकिंग कंपनियों को फालतू का पर्यावरण संरक्षण का ढकोसला बंद कर देना चाहिए।
एक किसान मिटटी खोदते खोदते तो कभी वर्षा का इंतजार करते करते पसीना बहाता है और फिर भी इतनी मेहनत के बाद कुछ हजार भी कमा ले तो स्वर्ग सा पा लेता है तो एक तरफ हम लोग यहाँ हजारों रुपये एक मील (रात या दिन का एक वक्त का खाना ) में खर्च कर देते हैं फिर भी ये कम्पनियाँ मिलियन और बिलियन में लाभ दिखा देती हैं।
मनुष्य का दिमाग है जो जितना उपयोग कर लिए जाए बस उतना ही लक्ष्मी आसानी से उपलब्ध होने लगती है, पहले ट्रेडिंग (शेयर मार्केट में)  फोन से होती थी और फिर इलेक्ट्रोनिक ट्रेडिंग से लाभ का दायरा और गति और तेज हो गयी ! उससे भी आगे इन सबको मात देते हुए अब ट्रेडर सिर्फ बैठकर प्रोग्राम लिखता है और कंप्यूटर हाई फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग के जरिये सेकंड के सौवें भाग में ही करोडो ट्रेड करते हुए - पैसे के सौवे भाग के अंतर में भी करोडों बनाने में सक्षम हो जाता है ।  चाहे मार्केट गिर रहा हो या फिर बढ़ रहा हो ये हाई फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग हर परिस्थिति में छोटे से अंतर के आधार पर पैसा बनाने में सक्षम होती है और ये सक्षमता मनुष्य के दिमाग से ही मशीनों में संभव हो पाई है।  पर किस कीमत पर  ?
अल गोर ने पर्यावरण के ऊपर एक फिल्म बनाकर नोबल पुरुष्कार जीत लिया और उस फ़िल्म के प्रोमोसन के कार्यक्रमों में अंधाधुंध बिजली खर्च की गयी उसका क्या  ?  खैर अमेरिकन लोगों का नोबल पुरुष्कार पर तो पहल हक लगता है, पिछली साल ओबामा भी तो बिना कुछ किये नोबल उड़ा ले गये !

BP और आयल रिशाव - एक कविता 

BP के बिलियन हुए खाली
पर समुन्दर में तेल अभी भी रिसना है जारी
प्रकृति से छेड़खानी इसको पड़ी भारी
इधर उधर मुंह अब  ये ताके अनाड़ी
नए तरीके उर्जा के अपना लो मेरे भाई
नहीं तो ये प्रलय की हुंकार होगी कसाई
 

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