पर्यावरण बचाना है--सबको पेड़ लगाना है!!---धरती हरी भरी रहे हमारी--अब तो समझो जिम्मेदारी!! जल ही जीवन-वायू प्राण--इनके बिना है जग निष्प्राण!!### शार्ट एड्रेस "www.paryavaran.tk" से इस साईट पर आ सकते हैं

बचपन और हमारा पर्यावरण---डा श्याम गुप्त

>> शनिवार, 9 अप्रैल 2011

                                                           -- परिचय--
नाम-- ---डा श्याम गुप्त       जन्म---१० नवम्बर, १९४४ ई.  
पिता—स्व.श्री जगन्नाथ प्रसाद गुप्ता, .
    जन्म स्थान—मिढाकुर, जि. आगरा, उ.प्र. .भारत   शिक्षा—एम.बी.,बी.एस., एम.एस.(शल्य)
    व्यवसाय-चिकित्सक,(शल्य)-उ.रे.चिकित्सालय ,लखनऊ से व.चि. अधीक्षक पद से सेवा निवृत
 साहित्यिक गतिविधियां-विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं से संबद्ध, काव्य की सभी विधाओं—गीत, अगीत, गद्य निबंध, कथा, आलेख , समीक्षा आदि में लेखन। इन्टर्नेट पत्रिकाओं में लेख।  
     प्रकाशित कृतियाँ  -- १. काव्य दूत, २. काव्य निर्झरिणी ३. काव्य मुक्तामृत (काव्य सन्ग्रह) ,
      ४. सृष्टि –अगीत विधा महाकाव्य  ५.प्रेम काव्य-गीति विधा महाकाव्य ६. शूर्पणखा महाकाव्य ।
मेरे ब्लोग्स( इन्टर्नेट-चिट्ठे)—http://shyamthot.blogspot.com ,  sahityshyam , vijaanaati-vijaanaati-science.blogspot.com   
सम्मान आदि—नराकास , राजभाषा विभाग,(उ प्र) द्वारा राज भाषा सम्मान, २००४, २००५.;
  अभियान जबलपुर संस्था द्वारा हिन्दी भूषण सम्मान, विन्ध्य.हिन्दी विकास संस्थान, नई दिल्ली द्वारा बावा दीप सिन्घ स्म्रति सम्मान, अ.भा.अगीत परिषद द्वारा-श्री कमलापति मिस्र सम्मान, अ.भा. साहित्यकार दिवस पर प.सोहन लाल द्विवेदी सम्मान, अगीत विधा महाकाव्य सम्मान, जाग्रति प्रकाशन मुम्बई द्वारा-पूर्व पश्चिम गौरव सम्मान, इन्द्रधनुष सन्स्था बिज़नौर द्वारा-काव्य मर्मग्य सम्मान, छ्त्तीस गढ शिक्षक संघ द्वारा-हिरदे कविरत्न सम्मान, युवाओं की सन्स्था; ’सृजनद्वारा महाकवि सम्मान ।
 पता—  डा श्याम गुप्त,  सुश्यानिदी, के-३४८, आशियाना ,लखनऊ-( उ.प्र. भारत ) २२६०१२ .
          मो. ०९४१५१५६४६४ -----------------------------------------------------------------------------------
बचपन और हमारा पर्यावरण
        बचपन और पर्यावरण में क्या संबंध है ? सम्बन्ध है, गहन सम्बन्ध है, अन्तः सम्बन्ध है। बचपन मानव जाति, मानवता अपितु समस्त प्राणि-जगत का भविष्य है और सुन्दर, स्वस्थ्य,व अनुकूल पर्यावरण उस भविष्य, भावी पीढी को विकसित, पल्लवित, पुष्पित व फ़लित होने देने के लिये आवश्यक वातावरण, पृष्ठ भूमि व भाव-भूमि है।
        अतः पर्यावरण का प्रदूषण समस्त प्राणिजगत के वर्तमान, भविष्य व अस्तित्व के लिये महान संकट का कारक है। पर्यावरण प्रदूषण केवल जल, थल, वायु प्रदूषण द्वारा प्राणी जीवन के शारीरिक दौर्वल्य व क्षमता में कमी ही नहीं करता अपितु वह मानसिक, चारित्रिक व सामाजिक प्रदूषण का भी कारण बनकर-भ्रष्टाचार,चरित्र-हीनता, आचरणगत दौर्वल्य व वन्शानुगत दुर्बलता का भी कारक बनता है। पर्यावरण मानव ही प्रदूषित करता है और मानव पर ही उसके दुष्प्रभाव होते हैं जो मूलतः आगे आने वाली पीढी भुगतती है। अतः यदि मानवता के भविष्य—संतति को बचपन से ही स्वस्थ्य व सुन्दर, अनुकूल पर्यावरण प्राप्त नहीं होगा तो मानवता व समस्त प्राणि जगत का ही भविष्य अन्धकारमय रहेगा।
       सामाजिक प्राणी होने के कारण जहां भी जब भी मानव, सामाजिकता व प्राकृति अनुशासनों के विरुद्ध कार्य व आचरण करता है तो पर्यावरण सहित प्रत्येक प्रकार के वातावरण को दूषित करता है। अतः जहां हमें स्वयं अपने आचरणों से पर्यावरण पर ध्यान देना होगा वहीं बचपन से ही भावी पीढी व बच्चे यदि अनुशासित नहीं होंगे तो वे पुनः पुनः समाज व पर्यावरण को प्रदूषित करते रहेंगे। अतः बचपन से ही पर्यावरण संबर्धन, समाज, भौतिकता, साहित्यिकता, नैतिकता, संस्कृति-रक्षण के संस्कार बच्चों में डालने चाहिये, ताकि वे अच्छे नागरिक बनकर पर्यावरण को संतुलित रखें।
       आज केवल वातावरणीय पर्यावरण-जल, थल, वायु-ही प्रदूषित नहीं है अपितु मानसिक, सामाजिक, प्रदूषण से भी धरती ग्रसित है। अतितीब्र गति से अनियमित विकास, संसाधनों का अति-दोहन-वृक्षों ,जन्गलों की अन्धाधुन्ध कटाई, अति-भौतिकतायुक्त सुख-सुविधायुक्त जीवनचर्या के कारण हम पृथ्वी के वातावरण को प्रदूषित करते जारहे हैं। ग्लोबल वार्मिन्ग, ग्लेशियरों का कम होना आदि इसी के परिणाम हैं।
      आज बच्चों के खेलने के लिये उपयुक्त पार्कों ,मैदानों को बहुमन्जिली इमारतों में बदला जारहा है, जहां दिखाने भर को कुछ थोडा सा स्थान बच्चों के पार्क
आदि के नाम पर रखदिया जाता है। घर घर में खुलते हुए स्कूल-कालेज-संस्थानों में खेलने-कूदने, स्वास्थ्य प्रदायक स्थान होते ही कब हैं। सडकों पर बच्चों को मास्क
२.
लगाकर जाते हुए देखा जा सकता है, विभिन्न श्वांस के रोग व अन्य रोगों दमा, सांस फ़ूलना, एलर्जी, जैसी बीमारियों का बच्चों में बढना प्रदूषण के कारण ही है। स्कूल कालेजों के बच्चों का अपराधों में लिप्त होना, गोली चलाना, लूट-अपहरण आदि में शामिल होना आदि सर्वांगीण प्रदूषण का ही परिणाम है। तेज आवाज के शोर-गानों आदि द्वारा ध्वनि प्रदूषण से बच्चों की श्रवण क्षमता घट रही है। प्रदूषित व मिलावटी खाद्य सामग्री से बच्चों की शारीरिक-मानसिक क्षमता पर प्रभाव पड रहा है।
       बचपन और पर्यावरण के अन्तःसम्बन्ध का ज्ञान भारतीय मनीषा व पुरा वैदिक विज्ञान को युगों पहले ही था। अथर्ववेद- ४/७ में ऋषि  कहता है—
     “ यदस्या कश्मैचिद् भोगाय् बलात् कश्मिद्द प्रक्रतान्ते ।
       ततं क्रिस्तेण् म्रियन्ते वत्सोश्च् धानुकोः ब्रकः      ॥
अर्थात् जो (व्यक्ति,समाज़्,शासन्) केवल भोग्-विलास् व लिप्सावश् प्रकृति का कर्तन्, दोहन् करते हैं, उनकी सन्तानें, पशु-पक्षी मृत्यु को प्राप्त् होते हैं। व्यक्ति समाज़् व राष्ट्र का नैतिक् कर्तव्य् निर्धारित् करते हुए अथर्व् वेद् कहता है—
   “  यदस्य् गोपदो सत्यालोप् अज़ोहितः ।
     तत्कुमारा म्रियन्ते ,यक्ष्मो विन्दत् नाशयात् ॥ “
अर्थात् जिस् ग्रह् ,नगर्, ग्राम्,समाज्, राष्ट्र में पर्यावरण् नष्ट् होता है वहां सन्तति ( ज़ैविक् धन्-पशु,पक्षी, मानव्-सन्तान् ) को यक्ष्मा (विभिन्न रोग् व विकार ) जकड कर् हानि पहुंचाते हैं। विश्व के सबसे प्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेद -४/१८ में  कहा है-
    “अयं पन्था अनुबित्तः पुराणो मतां देवां उपजायंत् विश्वे ।
    अतश्चिदा जनयीष्ट् प्रबुद्दो मा मातरममुया पन्तवेः कः  ॥ “
अर्थात् यह् पन्थ् सनातन् है ( सदैव सुनिश्चित् तथ्य ) कि प्रबुद्द लोग् अपनी आधार भूता माता (प्रकृति  व पर्यावरण्) को विनष्ट् न करें, यह् उनका प्रथम् कर्तव्य् है।
       इस प्रकार कहा जासकता है कि निश्चय ही पर्यावरण का बचपन से सीधा सम्बन्ध है, और यदि बचपन को स्वस्थ्य, सुखद, अनुकूल, अप्रदूषित पर्यावरण नहीं मिलता तो प्राणी जगत का भविष्य अन्धकारमय होना निश्चित है। हमें मनसा, वाचा, कर्मणा पर्यावरण प्रदूषण के प्रति सजग होजाना चाहिये, बच्चों को भी यह ज्ञान प्राप्त कराना चाहिये, ताकि संस्कृति, परम्परा ,प्रगति, विकास व आधुनिकता के समन्वित भाव से हर प्रकार का प्रदूषण समाप्त हो; और इन सबके समायोजन व समन्वय को लेकर चलने वाला भारतीय विश्वबंधुत्व-भाव, साहित्य, शास्त्र-परम्परा व वैदिक-विज्ञान के मार्ग पर चलकर ही बचपन व संपूर्ण मानवता के कल्याण का यह मार्ग प्रशस्त होगा, जो आज के भौतिकवादी युग की अनन्यतम आवश्यकता है ।

     रचनाकार ----डा श्याम गुप्त, सुश्यानिदी, के-३४८, आशियाना, लखनऊ(उप्र)-२२६०१२ --मो. ०९४१५१५६४६४.

           

1 टिप्पणियाँ:

Darshan Lal Baweja 9 अप्रैल 2011 को 2:17 pm बजे  

यदि बचपन को स्वस्थ्य, सुखद, अनुकूल, अप्रदूषित पर्यावरण नहीं मिलता तो प्राणी जगत का भविष्य अन्धकारमय होना निश्चित है---एकदम सही जी

एक टिप्पणी भेजें

हमारा पर्यावरण पर आपका स्वागत है।
आपकी सार्थक टिप्पणियाँ हमारा उत्साह बढाती हैं।

  © Blogger template Webnolia by Ourblogtemplates.com 2009

Back to TOP