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बचपन और पर्यावरण-- मोनिका जैन

>> रविवार, 24 अप्रैल 2011

My Name is monika jain.i compleated M.B.A. & pesetaly i am working
 at air raipur as a compear . my father'name is Mr.Pradeep kumar jain.
He is a doctor. Basially i am from simga dist.-raipur.
                                   My dream to make my india greean &
 clean.this lekh is only starting to send my thoughs to persons . Who
understand the actual meaning of environment.we thankfull to you bcoz
giving me this opportunity.


बचपन और पर्यावरण

प्रस्तावना’:- हंसता, मुस्कुराता, खिलखिलाता बचपन देखकर मन आनंदित हो उठा पर पर्यावरण की स्थिति देख । इस बचपन के भविष्य हेतु मन चिंतित हो उठा !पूरा विष्व आज पर्यावरण प्रदूषण ग्लोबल, वर्मिग जैसी बड़ी - बड़ी समस्याओं से जूझ रहा है ।

ये समस्यायें जहॉ दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है वहीं सुरसा की तरह मुंह फाड़े हमारे पर्यावरण और विकास को निगलती जा रही है । हम मनुष्य है ईष्वर तो नही जो इस विराट मुख से आसानी से निकल आयें और हमें नुकसान भी ना हो ।आज पृथ्वी प्रदूषित होती नजर आती है जिस तरफ देखो वायु, मृदा ,जल, सभी में
विषैले पन का अनुभव होता है ।

हमने अपने विकास और सुविधाओं को इस प्रकार विकसित किया कि हमारे पर्यावरणका हर कोना प्रदूषित हो चुका है । हम जानते है किन्तु हमेषा अंजान बनकर बार -बार वही करते है जो नहीं करना चाहिए । इस जाने अंजाने कार्यो से हमारी प्रकृति और पर्यावरण को केवल नुकसान ही होता आया है ।

कार्य किया विकास के लिए पर हमने अपनी सुख सुविधायों के लिए अपने पर्यावरण को क्षति पहुंचायी हमने अपना आज तो गुजार लिया किंतु आने वाले कलपर प्रष्न चिन्ह अंकित कर दिया । इस प्रष्न का उत्तर भी हमारे पास ही है । किन्तु उस उत्तर के लिए अभी से ही प्रयास करना होगा ।

बच्चों को अभी से ही पर्यावरण का महत्व समझाना होगा । पेड़ पौधे लगाओ से कहे बिना उन्हें पेड़ लगाकर बताना होगा ।
पर्यावरण को नुकसान क्यों और कैसे ?

कहने के लिए बहुत ही तुच्छ सा प्रष्न है किन्तु इस छोटे से सवाल पर बड़े बड़े बवाल
है ।

ये तो अब आम बात हो गयी है । छोटे से छोटे बच्चे तक अब बता देते है कि
पर्यावरण को नुकसान क्यों हो रहा है ? और कैसे हो रहा है और पर्यावरण
प्रदूषण के कारण हम कैसे प्रभावित हो रहे है एक छोटे से बच्चे में इतनी समझ
पर क्या फायदा उस समझ का प्रयोग प्रायोगिक तौर पर कहॉ हो पाता है । इसलिए
पहले प्रयोग फिर पढ़ाई में हो उपयोग वाली विधि का चयन करें ।

हमारे द्वारा रखी गयी असावधानियॉ ही कारण है पर्यावरण के नुकसान का ।

‘‘ चिड़िया चुग गई खेत अब पछतावा क्यों ?’’

ये पक्तियॉ भले ही किसी सज्जन ने हंसी में कह दिया होगा पर पर्यावरण की बात पर
सटीक है । सबसे पहले कुछ घटनाओं पर विचार करिये ।

(1) मुंबई के समुद्री किनारे पर तेल का भारी मात्रा में बहना ।

(2) जयपुर में पेट्रोल पंपों में लगी आग ।

(3) रेडियेषन के कारण रद्दी के दुकानों पर हुआ नुकसान

(4) भोपाल गैस कांड आदि ।

(5) भोपाल गैस कांड आदि ।

(6) प्रदूषण के कारण केवल फैक्ट्री या कारखानें ही नही है । हमारी
असावधानियॉ है ।

भले ही ये घटनायें अचानक घटित हुई । पर हुई तो हमारे ही कारण हमें पता
है कि पालीथिनों के प्रयोग पर रोक है फिर भी धड़ल्ले से हर कोई करता इनका
प्रयोग है ।

प्रयोग के बाद गंदगी फैलती है सो अलग । ये तो कुछ ही गलतीयों का भयावाह रूप
है । अगर गिनने बैठ जायें तो पृथ्वी के निर्माण के बाद हमारे किवास के प्रारंभ
से अब तक की दुर्घनाओं पर तो पूरी लाइब्रेरी ही बन जायेगी ।

(3) पहले और अब:- पहले भले ही हम कम विकसित ये किन्तु ये तो समझते कि यदि
पेड़ काटा है तो पौधा लगाना ही है ।

और अब पौधा लगायें ना लगायें पेड़ की कटाई जरूरी है ।

(4) एक छोट सी कहानी:- हम छोटे ये तब एक गांव गये वहॉ जाकर वो फल और
सब्जियों का आनंद उठाया जो अब केवल कल की बातें हो चुकी है ।

फिर घुमते - घुमते पता चला कि पहले जो भी सजा देनी होती तो पंच सरपंच
लोगों को पेड़ लगानें और उस पेड़ पौधों की देखभाल करने की सजा देते
थें । छोटी सजा कम पौधे लगाने की और बड़ी सजा ज्यादा पौधे लगाने की
होती थी ।

जानकर अच्छा लगा तब ये जब भी गलती होती एक छोटा सा पौधा लगानें की पहल की
पर बड़े होते - होते ये बातें पीछे छूट गयी । जो गलत हुआ पर कहीं कहीं
हमारी दी हुई षिक्षा काम आ गई ।

आज जब हमारे यहॉ बच्चे गलती करते है । या फिर जन्म दिवस आदि पर एक छोटा सा
पौधा लगवाकर हम खुष होते है । फिर ये विचार आता है कि केवल एक के प्रयास
से क्या होगा ।

हमारे यहॉ ही नही पूरे विष्व को इस कार्य को युद्व स्तर पर अपनाना होगा ।

(5) बचपन से करें षुरूवात:- छोटे - छोटे हाथों में बड़ी जिम्मेदारी न
थमाते हुए । उन्हें प्रयोग करके बताये पहले हर घर में बड़े - बड़े बाग बगीचे
हुआ करते थें और अब सारा गार्डन घर के अंदर रखे गमलों में आ गया है ।

(क) इसलिए प्रयत्न ये करें कि हर स्कूल हर घर में छोटे - छोटे बगीचे हो जहॉ
बच्चे पौधे लगायें और उनकी देखभाल बच्चों को सिखायें और खेत -
खलिहानों जंगलों या पौधों से संबंधित एक अलग विषय स्कूलों में पढ़ाये
जायें ।

(ख) स्कूलों में या घरों में जिस तरह से इंजिनियर, डॉक्टर, एम.बी.ए.,
कम्प्यूटर के क्षेत्र में पढ़ाई कराई जाती है । उसी प्रकार पौधो के अलावा खेती
- किसानी जैसे विषयों को भी षुरू से ही रखा जाये ।

(ग) पर उपदेष कुषल बहुतेरे इस प्रथा को हटाकर स्वयं से षुरूवात करते हुए ही
षिक्षा दें । अन्यथा बच्चों को सही मार्गदर्षन नहीं दिया जा सकता । इसलिए पहले
खुद की आदतें जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती हों उन्हें बदलने का प्रयत्न
करें ।

(घ) पर्यावरण और प्रकृति की सुरक्षा की षुरूवात तो कभी भी की जा सकती है पर
ज्यादा देर करने पर नुकसान और बढ़ सकता है । इसलिए समय रहते कुछ ऐसे नियम
बनाये और अनुषासन पूर्वक उन नियमों का पालन किया जायें ।

(ज) जन्म दिन, त्यौहारों पर बच्चों से एक पौधा जरूर लगवायें ।

वैसे बचपन के लिए तो बहुत षुरूवात है किन्तु पर्यावरण की सुरक्षा में बड़ों को
भी बड़चढ़ कर उत्साह दिखाना चाहिए ।

फल, फूल, सब्जीयों के अलावा पौधो और पेड़ो के महत्व को समझना और बच्चों
को समझाना होगा ताकि बचपन खुषबु, स्वाद व सेहत से जुड़ा रहे ।

निष्कर्ष:- आंचल के तुझे मै ले के चलू कुद याद आया । किषोर कुमार की सुरीली
आवाज और गीत के बोल जिसे हमें भविष्य में यथार्थ में बदलना होगा । ताकि
भविष्य में किसी का बचपन पर्यावरण की दी हुई सौगातो से अछूता ना रहे ।

विकास और प्रकृति एक साथ कदमों से कदम मिलाकर चले । प्रकृति - पर्यावरण इन
षब्दों के महत्व को समझना और समझाना होगा । ताकि भविष्य अंधकारमय होने
से बचा रहे ।

आज धीरे - धीरे स्थिति इतना विकराल रूप धारण कर चुकी है कि हम थोड़े से
असावधान हुऐ नही और बड़ी - बड़ी घटनायें घटित हो जाती है ।

(1) पर्यावरण ही प्रदूषित:- (क) सच पहले और अब में कितना अंतर है आज हर
मनुष्य पर्यावरण से जुड़ी हुई अपनी जिम्मेदारियों से विमुख है उसे फिक्र है
तो केवल अपनी सुविधाओं की ।

(ख) सुविधाओं का दायरा भी इतना बड़ा कि हर पल कोई ना कोई नया अविष्कार
हो रहा है फिर अविष्कार चाहे महामषीन का हो या फिर छोटी मषीन का सारे
प्रयोग होते तो प्थ्वी के लिए पर्यावरण को नुकसान ही पहुंचाते है ।

(ग) आज हर मौसम में एक नयी बीमारी और उस बीमारी के चक्रव्यूह में फंसते मनुष्य
कभी इसका कारण प्रकृति का कहर तो कभी मनुष्य के अनदेखे प्रयोग नुकसान तो
पर्यावरण का ही हुआ ना ।

(घ) विकास उचित, प्रयोग उचित किन्तु इनका दुरूपयोग अनुचित जिसके प्रति जागरूक ना
होकर हम पर्यावरण को लगाातार नुकसान पहुंचा रहे है ।

(2) पर्यावरण बचाव के उपाय:-

पौधे लगाओ, जनसंख्या वुद्वि रोको, ये सब बातें तो बहुत हुई । अब प्रायोगिक
तौर पर इन बातों को अपनाना होगा । और इसक षुरूवात होगी बचपन से ।

(3) बचपन से षुरूवात:-(क) स्कूलों, कालेजों में पर्यावरण और पर्यावरण से
संबंधित विषयों को पढ़ाने के अलावा प्रयोगिक तौर पर बताने का प्रयत्न किया
जाये ।

(ख) पर्यावरण की सुरक्षा को लेकर कुछ ऐसे नियम बनायें जायें जिससे पर्यावरण
को सुरक्षित रखा जा सके और अनुषासन पूर्वक नियमों का पालन किया जायें ।

(ग) बच्चों को जन्म दिन, त्यौहार आदि पर एक पौधा जरूर लगवायें ।

(घ) गलती करने पर ही पौधा लगाकर उसकी देखभाल करने की सजा दें । जिसमें
बड़े भी उनकी मदद करें ।

(ज) कृषि, बनों से संबंधित कुछ ऐसे विषेष विषय हों जो भविष्य में
अपनाकर बच्चे अपना कैरियर बना सके तकनीक ही नहीं प्रकृति के रूपों को भी पहनाने


ये तो कुछ उपाय है जिसके द्वारा बचपन में ही पर्यावरण के महत्व और उसके फायदें
जानें जा सकते है ।

किंतु पर्यावरण की सुरक्षा पर और गहराई से विचार कर उपायों का प्रयोग कर
पर्यावरण को बचाया जा सकता है । फिर चाहे बात सावधानी की हो, अपने विकास की
या फिर पर्यावरण सुरक्षा की ।

अभी नही तो फिर षायद कभी नही । अभी से पस्थितियों को सुधारने की पहल न
की जाये तो बाद में बचपन पर्यावरण से दूर हो जायेगा ।

ये बाते षायद हम कहीं न कहीं से समझनें लगे है । और षुरूवात हो चुकी है ।
समय रहते ही समझ लेना बेहतर होगा । ताकि आज और आने वाले कल का बचपन
पर्यावरण की देन से महरूम ना रह जाये ।

हमारे बचपन में मिली हुई सौगातें हम उन्हें भी दे पायें और जैसा मैने लिखा
उन्हें एक ऐसा गगन एक ऐसी छांव मिले जहॉ प्रदूषण जैसे गम उन्हें छू भी ना
सकें ।

तो आइये हम सब मिलकर पर्यावरण और बचपन को संवारने का मिलकर पर्यावरण और
बचपन को संवारने का मिलकर आगाज करें ।

नये दिन नई षुरूवात, नये सूरज नयी रौषन की स्वागत करें । जिसमें प्रदूषण
रहित पर्यावरण हो और हर बचपन षुद्व स्वाद, हवा, पानी, का हकदार है जो उसे
मिलना ही चाहिए ।

क्योंकि पर्यावरण से हम और हम से पर्यावरण आपस में इस प्रकार जुड़े है किसी
को भी नुकसान होना मतलब दूसरे को उससे बड़ा नुकसान ।

उसी प्रकार बचपन भी पर्यावरण से जुड़ा हुआ है । और इसे बचाने की चहल भी
बचपन से ही होना चाहिए ।

 मोनिका जैन
प्रदीप कुमार जैन
जैन मेडिकल स्टोर सिमगा

4 टिप्पणियाँ:

Darshan Lal Baweja 24 अप्रैल 2011 को 11:28 am बजे  

आभार इस जानकारी के लिये।

सुनील गज्जाणी 30 अप्रैल 2011 को 3:43 pm बजे  

नमस्कार !
आप के ब्लॉग पे पहली बार आने का सौभाग्य प्राप्त हुआ , अच्छा लगा !
सादर!

Akshitaa (Pakhi) 12 मई 2011 को 5:44 pm बजे  

अले वाह, पर्यावरण पर सुन्दर ब्लॉग..अच्छा लगा यहाँ आकर.

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पाखी की दुनिया : आकाशवाणी पर भी गूंजेगी पाखी की मासूम बातें

Abhishek Sahu 28 जुलाई 2011 को 6:08 pm बजे  

आपने सही कहा मोनिका जी,
साथ ही यह बताने का कष्ट करे की इसके लिए कदम कौन उठाएगा,
आवश्यक उठाने की जरुरत क्या हमें है,

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